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________________ ९६ ज्ञान और कर्म। [प्रथम भाग ___ एक तरहसे देखने पर अर्थात् जिसे शिक्षा दी जायगी उसपर दृष्टि रखने पर, मनुष्यके शरीर और आत्माके अनुसार, शिक्षाके शारीरिक और आध्यात्मिक ये दो विभाग किये जा सकते हैं। आध्यात्मिक शिक्षाके भी ज्ञानविषयक या मानसिक और नीतिधर्मविषयक या नैतिक, ये दो विभाग करना ठीक जान पड़ता है। और एक तरहसे देखने पर अर्थात् जिसकी बात सिखाई जायगी उसपर दृष्टि रखनेस, शिक्षा अन्तर्जगत्-विषयक और बहिर्जगत्-विषयक दो तरहकी होगी। बहिर्जगत्-विषयक शिक्षाको भी जड़विषयक, अज्ञानजीवविषयक, और सज्ञानजीवविषयक, इन तीन भागोंमें बाँट सकते हैं। अर्थात् शिक्षाके सब विषयोंको मिलाकर चार भागोंमें बाँट सकते हैं। और, इन चारों विषयोंकी विद्याको क्रमशः आत्मीवज्ञान, जड़विज्ञान, जीवविज्ञान, और नीतिवि. झान, (अर्थात् जीवकी सज्ञानक्रियाविषयक विद्या ) कह सकते हैं। इन चारों भागोंमेंसे हर एक भागके और भी अनेक अवान्तर विभाग हैं। जैसे आत्मविज्ञान के अन्तर्गत विभाग-न्यायवेदान्तादि दर्शन, मनोविज्ञान, गणित आदि हैं। जड़विज्ञानके अवान्तर विभाग-स्थूलजड़विज्ञान या जड़की स्थिति और गतिका विज्ञान, भूगर्भविद्या, ज्योतिःशास्त्र, रसायनशास्त्र, शब्द या ध्वनिका विज्ञान, प्रकाशविज्ञान, तापविज्ञान, विद्युद्विज्ञान और चुम्बकविज्ञान आदि हैं। जीवविज्ञानके अवान्तर विभाग-प्राणिविद्या, उद्भिविद्या आदि हैं। नीतिविज्ञान ( अर्थात् जीवकी सज्ञानक्रियाविषयक विद्या.) के अवान्तर विभाग भाषा और साहित्य, इतिहास, समाजनीति, अर्थनीति, राजनीति, धर्मनीति, इत्यादि हैं। जो कुछ ऊपर कहा गया वही संक्षेपमें निम्नलिखित आकारमें दिखाया जा सकता है। शिक्षा। (शिक्षार्थी पर दृष्टि रखनेसे) शारीरिक आध्यात्मिक मानसिक Ronrg--- नतिक
SR No.010191
Book TitleGyan aur Karm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupnarayan Pandey
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1921
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size65 MB
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