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________________ चौथा अध्याय ] बहिर्जगत् । ७९ मैं ऐसा नहीं समझता कि क्रमविकासका मत मान लेनेसे ही मनुष्य निरीश्वरवादी या जड़वादी हो जाता है। क्रमविकास या विवर्त्त एक प्रक्रियामात्र है। वह प्रक्रिया जिस शक्तिके द्वारा सम्पन्न होती है वह शक्ति अवश्य ही जीवकी देहमें और उसके मूल उपादानमें है; और वह शक्ति जिसने उसमें रक्खी है वह आदि कारण ही ईश्वर है। वह आदिकारण चैतन्ययुक्त है, इसके सम्बन्धकी युक्ति और तर्कका उल्लेख इस अध्यायके आदिमें ही कर दिया गया है। अब यह प्रश्न उठता है कि जड़जगत्की सब क्रियाएँ जैसे संभवतः मूलमें एक तरहकी हैं, और स्थूल जड़, परमाणु और ईथरकी गति उनका मूल है, वैसे ही जीवजगत्की सब विचित्र और विविध क्रियाएँ भी मूलमें किसी एक तरहकी क्रियासे उत्पन्न हैं या नहीं ? इस प्रश्नके दो भाग करके आलोचना करना आवश्यक है। कारण, जीवजगत्की क्रियाएँ दो प्रकारकी देख पड़ती हैं, एक अज्ञानक्रिया (जैसे जीवदेहकी वृद्धि और क्षय ) और दूसरी सज्ञानक्रिया (जैसे जीवका इच्छानुसार विचरना और उद्देश्यसाधनके लिए चेष्टा करना)। अज्ञान जैव ( अर्थात् जीवकी) क्रियाके जन्म, वृद्धि, विकास, क्षय और मृत्यु प्रधान प्रकार हैं। एक जीवकी देहके अंशसे अन्य जीवकी उत्पत्तिको जन्म कहते हैं। इसके सिवा अन्य जीवके संसर्ग विना जीवकी उत्पत्ति होनेके संबन्धमें यद्यपि मतभेद है, किन्तु वैसी उत्पत्तिका कोई ऐसा प्रमाण नहीं पाया गया जिसका खण्डन न हो सके। कभी कभी एक जीवदेहके किसी भी अंशसे अन्य जीवकी उत्पत्ति होती है; जैसे-पेड़की डाल काटकर लगा देनेसे दूसरा कलमी पेड़ तैयार होता है, अथवा किसी किसी जातिके कीड़ेकी देहके टुकड़ेसे दूसरा कीड़ा उत्पन्न हो जाता है। किन्तु प्रायः एक जीवकी देहके विशेष अंशसे ही अन्य जीवकी उत्पत्ति होती है, और उस विशेष अंशको बीज कहते हैं । वृद्धि और विकास दोनों शब्दोंके अर्थमें अन्तर है। 'वृद्धि केवल देहके आयतन ( लंबाई-चौड़ाई ) के विस्तारको कहते हैं। किन्तु विकासका अर्थ है, देहके आयतनका ऐसा विस्तार जिससे उसके कार्योपयोगी होनेकी उन्नति हो, अर्थात् देह अधिक काम करनेके योग्य बने । देहके आयतन अथवा कार्योपयोगिताकी अवनतिको क्षय कहते हैं । जीवनके अन्तका
SR No.010191
Book TitleGyan aur Karm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupnarayan Pandey
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1921
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size65 MB
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