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________________ दिगम्बर जैन साधु [ ५४१ हुआ सुनहलापन कम कर रहा था। ब्रह्मचर्य व्रत लेकर तो उसने उनकी रही - सही आशाओं पर तुषारापात ही कर दिया । जो भी सुनता, गंगाराम की ही चर्चा करता। फिर एक दिन, आसोज शु० ५ सं० २०३० का ही दिन था, मोरेना जाकर पूज्य आचार्य श्री कुन्यसागरजी महाराज के चरणों में बैठकर कर्मदल पर पहला प्रहार किया । विजयी गंगाराम का व्यक्तित्व चन्द्रमा की शीतल किरणों से सराबोर हो उठा और आचार्य श्री ने विनीत शिष्य को क्षुल्लक शांतिसागर कहकर उसे श्रात्म शांति की राह दिखायी । हृदय तृप्त न हुआ तो आचार्य श्री ने ( मंगसिर ५ सं० २०३० ) दो मास बाद "अम्वाह" में एक खण्ड वस्त्र को छोड़कर समस्त बाह्य परिग्रह से मुक्त कर दिया। गुरु आदेश से आप उत्कृष्ट श्रावकाचार का पालन करने लगे प्रतिपल इस चिंता के साथ कि मोक्षमार्ग में बाधक इस लंगोटी मात्र परिग्रह से मुझे आचार्य श्री कब छुटकारा दिलायेंगे । विशुद्ध भावों की आरोह की soft गुरुचरणों में निरन्तर दस्तक देती रही तो "पोरसा " की पुण्यभूमि में उसी वर्ष ( माघ सुदी सं० २०३० ) आचार्य श्री कुन्थसागरजी म० ने श्रावक वर्ग के जयघोष के बीच उसे निसंग करके श्रेयोमार्ग की अंतिम अवरोधक बाधा भी हटा दी । जगत का कोलाहल समाप्त हुआ । शांति का हृदय अनुपम शांति से भर गया । गुरु चरणों की रज मस्तक पर लगाकर नम्रीभूत हो वैठा तो मुख पर चन्द्रमा के धवल प्रकाश की तरह संतोष की किरणें विराजमान थीं। आचार्य ने असिधारा पर चलने का आदेश देते हुए "मुनि चंद्रसागर" कहकर आपको पुकारा । तभी से आप चंद्रमा की तरह निर्मल रत्नमय कीर्ति फैलाते हुए गुरु पदानुगमन कर रहे हैं । क्षुल्लक श्री वर्धमानसागरजी महाराज उत्तरप्रदेश में विचपुरी ( धौलपुर ) आवादी की दृष्टि से एक छोटा सा कस्वा भले ही हो, धर्मगंगा प्रवाहित करने में कभी छोटा नहीं रहा । श्रावकों की इस छोटी सी वस्ती में मृदुस्वभावी श्री हरिविलासजी अपनी पत्नी रोनाबाई के साथ मनोयोग पूर्वक चतुर्विध सघ की वैयावृत्ति करने में ही अपने जीवन की कृतकृत्यता मानते रहे हैं । इस दम्पत्ति के सं० १९६९ में निजगुणावतार रूप एक पुत्ररत्न हुआ जो आज जिनमार्ग की प्रभावना करता हुआ पू० वर्धमानसागरजी
SR No.010188
Book TitleDigambar Jain Sadhu Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherDharmshrut Granthmala
Publication Year1985
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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