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________________ दिगम्बर जैन साधु मुनिश्री सम्भवसागरजी महाराज द्वारा दीक्षित शिष्य मुनि श्री सुवर्णभद्रसागरजी [ ५२१ मुनि श्री १०८ सुवर्णभद्रसागरजी महाराज परम ज्ञानी ध्यानी तपस्वी मुनि श्री का जन्म गुलवर्गा जिले के नंदूर ग्राम में हुआ था । श्रापके पिता अनंतप्पा और माता रत्नाबाई थी । इनका गृहस्थ अवस्था का नाम शांतिलाल है । मातां पिता भाई बहिन स्त्री पुत्रादि तथा आर्थिक स्थिति उत्तम होते हुए भी आप इन सबसे सम्बन्ध त्यागकरु आत्म कल्याण के मार्ग पर अग्रसर हुए। आपने पूज्य श्री १०८ आचार्य धर्मसागरजी महाराज से ११ साल पहिले सप्तम ब्रह्मचर्य प्रतिमा ली थी। आपकी प्रबल भावना थी कि मैं मुनिव्रत को ग्रहण करके दर्शन, ज्ञान, चारित्र, तपादि आराधनाओं का सम्यक् प्रकार से पालन करके इस दुर्लभ नरभव को सफल करू' । तब आपने सन् ७४ में पूज्य श्री मुनि १०८ संभवसागरजी महाराज से मुनि दीक्षा ग्रहण की और आत्म साधना में लग गये | आपने जबलपुर में चातुर्मास किया । आपने अभी चारित्र शुद्धि व्रत में १२३४ उपवास करने का नियम लिया है । आप पहिले २ उपवास के बाद तीसरे दिन पारणा करते थे और अभी १ उपवास के बाद पारणा करते हैं । ३ या ४ घंटे तक लगातार प्रतिदिन एक पैर से खड़े होकर उग्र तपश्चरण व ध्यान करते हैं । आप स्वभाव से सरल मृदुभाषी और अध्ययन शील हैं। आहार में मात्र एक अन्न लेकर और सर्व प्रकार के रसों का त्यागकर नीरस आहार ग्रहण करने का आदर्श पेश कर रहे हैं । Xxx
SR No.010188
Book TitleDigambar Jain Sadhu Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherDharmshrut Granthmala
Publication Year1985
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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