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________________ [ ४७३ दिगम्बर जैन साधु मुनि श्री आर्यनंदीजी महाराज . श्री शंकररावजी का जन्म तालुका पेठन नामक ग्राम में हुआ था । आपके पिता श्री लक्ष्मण रावजी । अहमिन्द्र थे एवं माता कृष्णाबाईजी थीं । आपका गोत्र अहमिन्द्र वृषभ था, आप जाति से दि० जैन सेतवाल थे। आपका विवाह श्रीमति पार्वतीदेवी से हुआ जो धार्मिक कार्यों में काफी आगे रहती थी एवं २ प्रतिमा धारण कर रखी थी। आपके एक भाई व दो बहने थीं एवं आपके एक पुत्र व दो पुत्रियां थीं जिनमें से पुत्र का स्वर्गवास हो गया । आप निजाम सरकार के कष्टम आफिस में पेशकार थे। आपकी १९५३ में पेंशन हो जाने के बाद आपका सम्पूर्ण समय धर्मध्यान में जाने लगा। Limdsar आप वैराग्य की ओर बढ़े एवं आपने श्री समन्तभद्रजी आचार्य से कुन्थलगिरि में १३-११-१९५६ को दीक्षा ले ली व आप धार्मिक ग्रन्थों का अध्ययन करने लगे । आप हिन्दी, मराठी, अंग्रेजी, उर्दू, गुजराती, संस्कृत आदि भाषाओं के ज्ञाता थे । आपके वैराग्य का प्रमुख कारण पूर्वजन्म एवं बचपन के संस्कार एवं संसार की विचित्रता व स्वानुभव था। आपने दीक्षा लेने के बाद ६० से ६१ तक बाहुबलि कुम्भोज में चातुर्मास किया। सन् ६२ से ६९ तक आप गुरूकुल एलौरा में रहे । आपने एक से अधिक ग्रन्थों का गहन अध्ययन व स्वाध्याय किया। आप स्वभाव से मृदु व अल्पभाषी हैं और विद्वानों के बड़े अनुरागी हैं । आप स्वयं एक सजीव संस्था हैं जो संस्था के माध्यम से देश, धर्म व समाज की सेवा में संलग्न हैं।
SR No.010188
Book TitleDigambar Jain Sadhu Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherDharmshrut Granthmala
Publication Year1985
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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