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________________ [ ४४७ दिगम्बर जैन साधु मुनि वीरसागरजी महाराज 000000 . . . . . . मुनि वीर सागर का जन्म पंजाब प्रान्त के जिला सरोजपुर के समीप धर्मपुरा में अग्रवाल जाति में सेठ नारायणप्रसादजी के यहां हुआ था। आपका पूर्व नाम कल्याणमल था। आप आजीवन बाल ब्रह्मचारी रहे, आपने आदिसागरजी से प्रथम प्रतिमा धारण की थी। उत्तरप्रदेश में आपने क्षुल्लक दीक्षा ली। आचार्य शान्तिसागरजी से ऐलक एवं मुनि दीक्षा ली। आपने अपने जीवन के अन्त में समाधि धारण कर आत्म कल्याण किया। . आचार्य श्री सूर्यसागरजी महाराज A jhi. रोज का ही यह क्रम है। डालमियानगर में धक्का-मुक्की को सहते हुए नागरिक भव्य संगमरमर की समाधि पर फूल चढ़ाये बिना अपना कारोबार शुरू नहीं करते । स्व० सूर्यसागरजी महाराज की यह समाधि जव से साहू श्री शांतिप्रसादजी ने वनवाई है, भक्तों की वेशुमार भीड़ खिंचतीसी चली आती है । स्टेशन से निकलते ही रिक्शे वाले चीख-चीख कर भक्तों को उसके बारे में बताना नहीं भूलते । कहते हैं इससे शगुन अच्छा होता है और वोहनी भी अच्छी होती है, सो वे पहली सवारी वहीं की लेते हैं । ऐसे प्रभावशाली तपस्वी थे हमारे सूर्यसागरजी महाराज । .
SR No.010188
Book TitleDigambar Jain Sadhu Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherDharmshrut Granthmala
Publication Year1985
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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