SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 479
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ ४३१ . दिगम्बर जैन साधु श्री जम्बूसागरजी आपका जन्म शान्तिनाम मैसूर प्रान्त में ई० सन् १९०४ में हुवा । आपका पूर्व नाम वम्मणा था। २० वर्ष की उम्र में आपकी शादी हो गई तथा आप गृहस्थ धर्म का पालन करने लगे । १४-५-३७ में आपने ५ वी प्रतिमा धारण करली तथा आजन्म ब्रह्मचर्य व्रत युवा अवस्था में लेकर काम देव पर विजय प्राप्त किया। पूज्य आचार्य जयकीर्तिजी महाराज से आप एव आपकी पत्नी ने तीर्थराज शिखरजी में क्षुल्लक दीक्षा ली। आपका नाम जम्बूसागरजी तथा धर्मपत्नी का नाम राजमतीजी रखा । जो आज भी बड़ी धर्म प्रभावना कर रही हैं । पू० नेमिसागरजी महाराज - ' से २६-८-३९ में मुनि दीक्षा ली। आपने २७ चातुर्मास भारत के सभी प्रान्तों में विहार कर अभूतपूर्व प्रभावना की । अनेकों ग्रन्थों की रचना की तथा अनेकों ग्रन्थों की टीका की । जगह जगह प्रतिष्ठा आदि भी आपके आदेश से हुई । आपने यज्ञोपवीत संस्कार नामक पुस्तक का भी लेखन कार्य किया है । आचार-विचार पर आपका महत्व ज्यादा था तथा प्रवचनों के माध्यम से जैन धर्म की प्रभावना की। मनिश्री आदिसागरजी वेलगांव जिले के अक्किवाट ग्राम में आपका जन्म हुमा । पिताजी का नाम दंडाप्पा था। महाराजजी का गृहस्थाश्रम का नाम शिवा था। शादी हुई थी। दो सन्ताने भी हई । श्री १०८ वीरसागरजी महाराज के पास १३ साल तक क्षुल्लक अवस्था में रहे । सांगली में ४-१२-६२ को-श्री १०८ नेमिसागरजी के पास निम्रन्थ दीक्षा ली । आपने समस्त तीर्थ स्थलों की यात्रा की है । मराठी कन्नड़ और हिन्दी भाषा का आपको ज्ञान है । क्षुल्लक शांत अवस्था में एक साथ नव उपवास कर अचाम्ल व्रत निरंतराय किया है। परिणाम बिल्कुल शांत हैं । शान्त स्वभावी और मितभाषी हैं । मुनि आचार निरन्तराय पालन करने में दक्ष हैं। संघ के वयोवृद्ध अत्यन्त भद्र सरल स्वभावी मुनिराज हैं। . . . ... . . .......... ..* .-.-- - - --- -
SR No.010188
Book TitleDigambar Jain Sadhu Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherDharmshrut Granthmala
Publication Year1985
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy