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________________ दिगम्बर जैन साधु [ ४०३ आ० शान्तिमती माताजी आपका जन्म कोल्हापुर जिले में सांगली ( महाराष्ट्र ) में हुवा था आप बाल्यकाल से ही धर्म प्रवृत्ति की थीं। आपने आचार्य विमलसागरजी से तीर्थराज सम्मेदशिखरजी सिद्धक्षेत्र में ७-११-१९७२ में आर्यिका दीक्षा धारण को । आपने दीक्षा लेने के बाद सिद्धान्त ग्रन्थों की ओर लक्ष्य किया एवं स्वाध्याय करने के भाव हुए । आप इस समय जैनागम के उच्चकोटि के ग्रन्थों का स्वाध्याय कर रही. हैं । धन्य है आपकी तपस्या, धन्य है आपका त्याग। प्रायिका सिद्धमती माताजी श्री १०५ प्रायिका सिद्धमतीजी का पहले का नाम सोनाबाई था। आपका जन्म भादों वदी ७ सं० १९९० में मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में हुआ था। आपके पिता श्री मन्नुलालजी और माता भंवरीबाई थी। आपके परिवार में दो बहिनें भी हैं । आप परवारजाति की भूषण हैं । आपकी लौकिक व धार्मिक शिक्षा पारा महिलाश्रम में हुई थी। आपका विवाह श्री गोकुलचन्द्रजी के साथ हुआ था । परन्तु छह महीने बाद ही आपको पति वियोग..को सहन करना पड़ा। शोक को भुलाने के लिए और अपनी आत्मा का उद्धार करने के लिए, आपने धर्म-चर्चा, जिनेन्द्र-पूजन आदि में मन लगाया। परिणामों में आशातीत विशुद्धता आई तो आपने बड़वा में फागुन सुदी १० सं० २०१३ को क्षुल्लिका दीक्षा ले ली। दीक्षित नाम चन्द्रमती रखा गया औरमांगीतुगी क्षेत्र पर पौष बदी २ सं० २०१४ को आर्यिका दीक्षा ग्रहण करली । आपके दीक्षा गुरू श्री १०८ आचार्य विमलसागरजी थे। आपके चातुर्मास इन्दौर, ईसरी, कोल्हापुर, सुजानगढ़ आदि स्थानों पर हुए । जनता आपसे बड़ी प्रभावित हुई, आपने जनता को काफी धर्मलाभ दिया। आपने घी, तेल, दही आदि रसों का त्याग कर दिया।
SR No.010188
Book TitleDigambar Jain Sadhu Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherDharmshrut Granthmala
Publication Year1985
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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