SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 424
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३७६ ] दिगम्बर जैन साधु मुनिश्री पुष्पदंतजी महाराज 23. महाराष्ट्र राज्य के भंडारा जिले के गोन्दिया नगर में आपका जन्म श्री कोमलचन्दजी के घर में १ जनवरी १९५२ को हुआ। इनका गृहस्थ अवस्था का नाम सुशीलकुमार था। इनकी सम्पूर्ण शिक्षा छतरपुर (म० प्र०) में हुई । इन्होंने रीवा विश्वविद्यालय से बी० एस० सी० किया । आप पढ़ने में बहुत तेज थे एवं . . . . . . . कॉलेज में राजनैतिक क्षेत्र में भी अग्रणी रोल अदा करते थे। इनकी इच्छा आगे एम० कॉम० व एल० एल० बी० करने की थी। आप विद्यार्थी जीवन में घोर अनास्थावादी रहे । धर्म व धार्मिक कार्यों में अरुचि आपके माता-पिता को काफी कष्ट देती थी। किन्तु एक पारिवारिक घटना ने आपके जीवन का नक्शा ही बदल दिया । संयोग से इसी समय आप युवाचार्य श्री विद्यासागरजी के सम्पर्क में आये । प्राचार्य श्री के जादुई व्यक्तित्व से प्रभावित होकर आपने सन् १९७८ में आचार्यश्री से ब्रह्मचर्य व्रत ग्रहण किया। अब आप आचार्य श्री के चरणों में बैठकर जिनवाणी का अवगाहन करने लगे। आचार्य श्री ने इनकी ज्ञान गरिमा, तप, निष्ठा एवं कठोर साधना को देखकर इन्हें २ नवम्बर १९७८ को नैनागिरि तीर्थ क्षेत्र में क्षुल्लक दीक्षा दी एवं शील सागर नाम रखा। १४ नवम्बर १९८० को प्राचार्य श्री से ऐलक दीक्षा ग्रहण की। ___ मन में मुनि दीक्षा की तीव्रतम इच्छा संजोये अपनी छटपटाती आत्मा के साथ आचार्य श्री की आज्ञा से २१ जनवरी १९८० को ललितपुर की तरफ विहार किया। बालवेट अतिशय क्षेत्र ललितपुर में आचार्य श्री विमलसागरजी ने इनकी साधना, चारित्र एवं अगाध ज्ञान को देखते हुए इन्हें ३१ जनवरी १९८० को माघ शुक्ला पूर्णमासी के दिन गुरुवार को मुनि दीक्षा दी। आचार्य श्री ने इनके उत्कृष्ट ज्ञान, उत्तम तार्किक बुद्धि, मुखरित वाणी, युवा हृदय, कठोर साधना एवं अनूठी श्रद्धा को देखते हुए इन्हें स्वपर कल्याण हेतु विहार की प्राज्ञा दी।
SR No.010188
Book TitleDigambar Jain Sadhu Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherDharmshrut Granthmala
Publication Year1985
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy