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________________ [ ३७५ दिगम्बर जैन साधु मुनिश्री उदयसागरजी महाराज आपका जन्म जिला उदयपुर ( राजस्थान ) के एक छोटे से ग्राम बड़ा वाढ़ेड़ा में सम्वत् १९७८ में नरसिंह पुरा जाति के श्री खेमराजजी के यहां हुमा । आपकी माताजी का नाम भूरीबाई था । आपका गृहस्थावस्था का नाम मगनलाल है । आपका पूरा परिवार धार्मिक प्रवृत्ति का था। आपका विवाह सं० २००० में ग्राम कुरावड के नरसिंह पुरा जाति के श्री मारूलालजी की सुपुत्री कमलाबाई के साथ हुआ। आपके ८ पुत्र-पुत्रियां उत्पन्न हुए परन्तु भाग्योदय से उनमें से केवल एक पुत्र ही जिन्दा रहा जिसका नाम महावीर है आपका गृहस्थावस्था का अधिकांश समय जैन मुनियों के बीच एवं तीर्थ वन्दना में ही व्यतीत हुआ। आपकी रुचि जैन धर्म के प्रति शुरु से ही अधिक रही है। आपने ब्रह्मचर्य व्रत सं० २०२६ में आचार्य श्री महावीरकीर्तिजी महाराज से सिद्ध क्षेत्र पावागढ़ में लिया। ७ वी प्रतिमा आपने आचार्य श्री १०८ सन्मतिसागरजी से ली। आपने मुनि दीक्षा आचार्य श्री १०८ सन्मतिसागरजी से ग्वालियर में जेष्ठ सुदी ८ सं० २०३५ में ली तभी से आप मुनि उदय सागरजी के नाम से जाने जाते हैं । आप अपना अधिक समय धर्म ध्यान एवं अध्ययन में व्यतीत करते हैं। मुनिश्री मतिसागरजी महाराज आपका जन्म सं० १९७६ में पौषवदी १४ शनिवार को पिता श्री इन्दरलालजी एवं माता 'श्री भूरीबाई की उज्ज्वल कोख से ग्राम सागौनी कला जिला दमोह ( म०प्र०) पोस्ट तेजगढ में हुआ । गृहस्थावस्था का नाम श्री छोटेलालजी था । आप परवार जाति में गोहिल्ल गौत्र नगाडिम भूरी हैं। आपकी सं० १९६६ में शादी हुई और ६ संतानें हुई। तत्पश्चात् आपने गृहस्थाश्रम से उदासीन हो वैराग्य की ओर अग्रसर होकर ७ वी प्रतिमा मुनि श्री पुष्पदन्तसागरजी से ग्रहण की। क्षु० दीक्षा सम्मेदशिखरजी में फाल्गुन शु० १५ सं० २०३३ को एवं मुनि दीक्षा अयोध्या में प्राचार्य विमलसागरजी महाराज से ग्रहण की । नाम करण श्री मतिसागरजी हुआ आप सरल एवं शान्त स्वभावी हैं।
SR No.010188
Book TitleDigambar Jain Sadhu Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherDharmshrut Granthmala
Publication Year1985
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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