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________________ ३५२ ] दिगम्बर जैन साधु ___ कांगनौली गांव है तो छोटा पर बड़ा सुन्दर है । यहाँ के निवासियों को सभी सुविधायें प्राप्त हैं । इस गांव में दिगम्बर जैन धर्म का आराधन करने वाले एक श्रावक दंपति रहते थे जिनका नाम देवगोडा नरस गोडा पाटील व इनकी पत्नी का नाम सौ० मदनावली था। ये दोनों परम धार्मिक दान पूजा में आसक्त परम संतोषी थे । इनके दो पुत्र व तीन पुत्रियां हुई। १. आक्काताई, २ बापूसाहेब, ३. कुसुमताई, ४. पाना साहेब, ५. गगूताई । पूज्य स्व० १०८ श्री आचार्य शांतिसागरजी महाराज जिस परदाशुद्ध पाटीदा वंश में उत्पन्न हुये थे उसी चतुर्थ जैन पाटीदा वंश में आपने जन्म लिया है । आपका जन्म कागनौली गांव में दिनांक १४-१-१९१८ को पौष में हुआ है । आपकी प्राथमिक शिक्षा भी कांगनौली में ही हुई पर मराठी सप्तम कक्षा तक का शिक्षण प्रापने वेदागांव में प्राप्त किया था। जब आपकी बड़ी बहिन आकाताई के विवाह का दिन निश्चित हुया और उसके लिये भोजगांव से बरात आई तो उसमें श्री ... भी आये थे उन्होंने बापू साहेब के साथ अपनी पुत्री के विवाह का प्रस्ताव रखा जिसे श्री देवगोडाजी ने तत्काल स्वीकार कर लिया बस फिर क्या था बहिन के विवाह के अवसर पर ही आपका विवाह भी श्री देवेन्द्र मानगांव, भोजकर की पुत्री सौ० कांक्षिणी मुरदेवी के साथ सन् १९३७ में १६ वर्ष की अवस्था में हो गया । उभय दम्पत्ति तब श्रावक धर्म की परिपालना करते हुये अपना समय व्यतीत करने लगे। • कुछ समय बाद श्री बापू साहेब अर्थोपार्जन की दृष्टि से बड़ोदा पहुंच गये और वहां (सकिन्ड बड़ौदा इन्फेन्ट्री में ) मिलिट्री में भरती हो गये । मिलिट्री में आप अनुशासन प्रिय दृढ़ निश्चयी सत्य निष्ठ सैनिक सिद्ध हुये । आपकी इस सत्य निष्ठा से प्रभावित होकर अधिकारियों ने सैनिकों की भोजन व्यवस्था का भार भी आपको ही सौंप दिया। ____ सन् १९४० में जब युद्ध छिड़ा तो अंग्रेज सरकार की प्रेरणा से बड़ौदा सरकार ने एक मिलिट्री भेजी, जिसमें १५०० सैनिक थे । श्री बापू साहेब को भी इस मिलिट्री में जाना पड़ा, सारी व्यवस्था का भार तो आप पर ही था । आपने बड़ी कुशलता के साथ व्यवस्थायें स्थान-स्थान पर करते रहे । इस तरह यह मिलिट्री बड़ौदा से रवाना होकर लाहौर आगरा होते हुये कलकत्ता पहुंची और वहां फैनी-चटगांव बन्दरगाह पर व्यवस्था हेतु आयी । इसी समय कांगनौली से आपके छोटे भाई श्री पाना साहेब का तार मिला, पिताजी की तबियत खराब है शीघ्र आओ पर सैनिकों की व्यवस्था का भार सैनिकों का अनुशासन-आप तत्काल वापिस न लौट सके । एक माह बाद जब आप वापिस लौटे तो गांव के बाहर ही आपको पिताजी के स्वर्गवास के समाचार मालूम पड़े। आपको उस समय पिता के
SR No.010188
Book TitleDigambar Jain Sadhu Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherDharmshrut Granthmala
Publication Year1985
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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