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________________ [ ३५१ दिगम्बर जैन साधु . . . मनिश्री वर्धमानसागरजी महाराज आपका जन्म धरमपुरी जिला (धार) निमाड़ म०प्र० के निवासी श्री हजारीलालजी की धर्मपत्नी श्रीमती कस्तूरीबाई की कोख से श्रावण शुक्ला त्रयोदशी सं० १९८४ को हुवा । आपका गृहस्थ अवस्था का नाम श्री मांगीलालजी था । आपके वंशज धर्म परायण वृत्ति के होने के नाते आपमें बचपन से ही धर्म के प्रति श्रद्धा एवं पूर्ण आस्था थी। आपने सं० १९६७ में ही दूसरी प्रतिमा के वन इंदौर में ले लिये थे। तत्पश्चात् २००८ में सप्तम प्रतिमा ली और सं० २००६ में ही चंदेरी में क्षुल्लक दीक्षा धारण कर ली । भ्रमण करते हुये आप सं० २०११ में श्री सम्मेदशिखर पहुंचे जहां आपने फागुन शुक्ला १५ को आचार्य महावीरकीर्तिजी महाराज सा० से मुनि दीक्षा धारण कर ली। आपको संस्कृत, हिन्दी, प्राकृत, मराठी, गुजराती, अंग्रेजो, कन्नड़ आदि भाषाओं का अच्छा ज्ञान प्राप्त है। आप ज्योतिषशास्त्र के भी अच्छे ज्ञाता हैं । अब तक आपके चातुर्मास इंदौर, भोपाल, कटनी, सम्मेदशिखरजी, चांपानेर, फुलेरा, जयपुर, टोडारायसिंह, प्रतापगढ़, धरियावद, श्रवणवेलगोल उदयपुर आदि स्थानों पर सानन्द सम्पन्न हुये हैं। मुनिश्री आदिसागरजी महाराज पूज्य आदिसागरजी महाराज उदारमना सरलाशय परम तपस्वी महाव्रती संत हैं । आपका जन्म दक्षिण प्रांत में कांगनौली नामक गांव में हुआ है तथा तालुका चिकौड़ी जिला बेलगांव में पड़ता है।
SR No.010188
Book TitleDigambar Jain Sadhu Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherDharmshrut Granthmala
Publication Year1985
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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