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________________ ३४६ ] दिगम्बर जैन साधु मिश्री सा माधुर्य, दृष्टि में आकर्षण शक्ति तथा व्यवहार में अनोखा जादू भरा है। आप तरण-तारण निज-परहित दक्ष, मंगल भावना के संगत अनेक गुणों से मंडित होने के कारण एक विशाल मुनि संघ के अधिपति श्री हैं और गुरु परम्परानुसार शिष्यों पर वात्सल्य दृष्टि रखते हुए उन्हें ज्ञानार्जन कराते रहते हैं । आप यन्त्र, मन्त्र, तन्त्र, विशारद तथा भविष्य वक्ता तपस्वी होने से असंख्य जन का कल्याण कर रहे हैं। त्याग की मूर्ति : ६४ वर्ष की अवस्था होने पर भी आप में रंचमात्र प्रमाद नहीं है । आप रात्रि में मात्र तीन घण्टे की नींद लेते हैं तथा वह भी ध्यानस्थ मुद्रा में । अपने दैनिक षट आवश्यक कार्यों में जरा भी शिथिलता नहीं बरतते आपने चारित्र शुद्धिव्रत तथा अन्य कई व्रतों को पूर्णता दी है। आप प्रत्येक चार्तुमास अवधि में एक दिन आहार तथा एक दिन उपवास अर्थात् ४८ घण्टे बाद आहार लेते हैं। वह भी बिना किसी अन्तराय के सम्पन्न हो तब, इन उपवासों के अतिरिक्त अन्न का त्याग तो आप अनेक बार काफी लम्बी अवधि के लिए कर चुके हैं । अपनी अभूतपूर्व त्याग एवं संयम की क्षमता से आचार्य श्री एक इतने बड़े संघ को संगठन देकर देश और समाज का कल्याण कर रहे हैं। - धार्मिक संस्थाओं की स्थापना : अनेक धार्मिक संस्थायें, चैत्यालय, मन्दिर, स्वाध्यायशाला, औषधालय एवं धर्मशालायें आपके उपदेश एवं प्रेरणा से अनेक स्थानों पर स्थापित की गई हैं। जिनके माध्यम से वर्तमान में अनेक भव्य प्राणी पुण्योपार्जन कर रहे हैं । गुनौर में जैन पाठशाला, टूडला में औषधालय, श्री सम्मेदशिखरजी पर भव्य समवशरण और राजगृही में आचार्य महावीर कीर्ति सरस्वती भवन आज भी आपकी यशोकीर्ति गा रहे हैं । आपने कई पंच कल्याणक प्रतिष्ठायें कराई हैं जिनका वर्णन लेखनी से बाहर है। आपके सोनागिरि चातुर्मास अवधि में आपकी प्रेरणा से क्षेत्र में एक विद्यालय की स्थापना की गई है तथा पर्वत पर चन्द्रप्रभ भगवान के मन्दिर के बाह्य प्रांगण में बाहुबली स्वामी की मूर्ति के दोनों और नंग एवं अनंगकुमार मुनियों की मूर्तियां स्थापित की जा रही हैं एवं कमेटी के पास एक विशाल सरस्वती भवन तथा सभा-भवन का निर्माण कार्य चालू है। यही कारण है कि प्राचार्य श्री को जैन समाज की आध्यात्मिक सम्पत्ति कहा जाता है। आपके द्वारा हाल ही में सोनागिर में चन्द्र प्रभू चौक में एक मुनि दो आर्यिका एक क्षुल्लक एवं क्षुल्लिका दीक्षा करायी गई है। आचार्य महाराज अत्यन्त शान्त परिणामी, महान तपस्वी विद्वान: साधु हैं । आपके माध्यम से समाज और राष्ट्र का बहुत कल्याण हो रहा है । आपने अपने दायित्वों..
SR No.010188
Book TitleDigambar Jain Sadhu Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherDharmshrut Granthmala
Publication Year1985
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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