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________________ ३४२ ] ' दिगम्बर जैन साधु आचार्य विमलसागरजी महाराज. 3 - - -Ac.. . h .', Stotry परम पूज्य प्रातः स्मरणीय ज्योतिविद, तपस्वी, चारित्र चक्रवर्ती प्राचार्य श्री १०८ विमलसागरजी महाराज जिनके श्री आगमन की सूचना मात्र से हो प्राणियों के हृदय कमल खिल उठते हों, जिनके नगर प्रवेश के समय से ही समस्त भक्त जीवों के हृदय में धर्म को अजन धारा वहने लगती हो, जिन्होंने कितने ही भव्य जीवों का कल्याण किया हो, जिनके समक्ष राजा-रंक, अमीर-गरीव, शत्रु-मित्र का भेद भाव न हो, जो सब पर सदा सर्वदा वात्सल्य दृष्टि रखते हों, ऐसी महान BE आत्मा.की यशोगाथा लिखना सूर्य को दीपक दिखाने के समान है। जन्म एवं शिक्षा : ' आचार्य श्री का जन्म आश्विन कृष्णा ७ सं० १९७२ को उत्तरप्रदेश के एटा जिलान्तर्गत जलेसर कस्वे से लगभग डेढ़ मील दक्षिण में 'कोसमा' नामक गांव में हुआ। आपका नाम श्री नेमीचन्द रखा गया । आपके पिता श्री लाला विहारीलालजी सुप्रतिष्ठित गृहस्थ थे तथा माता कटोरीवाई धर्म के प्रति बड़ी आस्थावान थीं । जन्म के छः मास पश्चात् ही आपकी माता का स्वर्गवास होने से आपका . लालन-पालन आपकी वुमा श्रीमती दुर्गावाई के संरक्षण में हुआ। .: .. :. . प्रारम्भिक शिक्षा के वाद उच्च शिक्षा हेतु आपने लगभग १० वर्षों तक गोपाल सिद्धान्त विद्यालय मुरैना में अध्ययन किया और वहाँ से शास्त्री परीक्षा उत्तीर्ण की । वहाँ विद्यागुरू न्यायालंकार पं० श्री मक्खनलालजा शास्त्री के सानिध्य में आपने धार्मिक संस्कारों एवं आगम में पूर्ण श्रद्धा और
SR No.010188
Book TitleDigambar Jain Sadhu Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherDharmshrut Granthmala
Publication Year1985
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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