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________________ [ ३२५ दिगम्बर जैन साधु क्षुल्लक श्री पदमसागरजी महाराज श्री १०५ क्षुल्लक पदमसागरजी का गृहस्थावस्था का नाम देवलाल मारवाड़ा था। आपका जन्म आषाढ़ वदी चौदस विक्रम संवत् १९५३ में नैनवां (बूदी ) राजस्थान में हुआ था। आपके पिता श्री रामचन्द्रजी व माता श्री छन्नावाई थी । आप अग्रवाल जाति के भूषण व गर गोत्रज हैं। धार्मिक एवं लौकिक शिक्षा साधारण हुई । विवाह भी हुआ। आपने स्वयं के अनुभव से संसार को नश्वर जानकर आचार्य श्री १०८ देशभूषणजी महाराज से वैशाख सुदी ११ को विक्रम संवत् २०२१ में सातवीं प्रतिमा के व्रत ले लिये । इसके बाद आषाढ़ बदी चौदस विक्रम संवत २०२१ में आपने आचार्य श्री १०८ देशभूषणजी महाराज से क्षुल्लक दीक्षा ले ली । टोंक, लावा, चोरू आदि स्थानों पर चातुर्मास कर धर्मवृद्धि की। आपने तीनों रसों को त्याग दिया है। क्षुल्लक श्री भद्रबाहुजी मगुर (औरंगाबाद ) में अम्बालालजी का जन्म हुवा था। आपकी मातृ भाषा मराठी रही है । आपके पिताजी का नाम श्री शंकरलालजी था। तीर्थराज सम्मेदशिखरजी में आपने चौथी प्रतिमा मुनि धर्मसागरजी से धारण की तथा सातवी प्रतिमा आ० शन्तिसागरजी से ली । पश्चात् क्षुल्लक दीक्षा देशभूषणजी महाराज से १९५८ में ली। आपने महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, बिहार, गुजरात, राजस्थान, दिल्ली आदि प्रान्तों में विहार कर, प्रवचन देकर धर्म प्रभावना की है। आप सरल एवं शान्तस्वभावी साधु थे।
SR No.010188
Book TitleDigambar Jain Sadhu Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherDharmshrut Granthmala
Publication Year1985
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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