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________________ दिगम्बर जैन साधु [ ३२३ मुनिश्री शान्तिसागरजी महाराज श्री १०८ मुनि शान्तिसागरजी का पहले का नाम शिवप्पा था। आपका जन्म आज से ७२ वर्ष पूर्व बेलगांव जिले के चन्दुर गांव में हुआ था। आपके पिता श्री सत्यन्धरजी थे । आपकी माताजी रुक्मणिदेवी थी । आपकी लौकिक शिक्षा कक्षा ४थी तक हुई और धार्मिक शिक्षा प्रवेशिका तक हुई। आपका पैतृक व्यवसाय कृषि था। बाद में व्यापार करने लगे थे । आपके परिवार में एक भाई दो बहनें हैं । आपका विवाह भी हुआ पर घर में मन नहीं लगा। आप घर में रहकर भी वैरागी थे। प्रतिदिन के शास्त्रश्रवण, देव पूजन और गुरू उपदेश से आपके भावों में विशुद्धता आई, अतएव आपने २-४-१९४३ को सांगली जिले के भोसे गांव में श्री १०८ प्राचार्य देशभूषणजी महाराज से मुनि दीक्षा ली । आपने सांगली, इलाहबाद, मधुवन, बडौत, कलकत्ता आदि स्थानों पर चातुर्मास किए । वहां आपके रहने से बड़ी धर्म प्रभावना हुई। आपने मोक्षशास्त्र दशभक्त्यादि के पाठों का काफी मनन किया । आपने तेल दही का त्याग कर दिया है । Simirrowniantation मुनिश्री निर्वाणसागरजी महाराज परम पू० मुनि श्री का जन्म राजस्थान जयपुर के ढ्याणी पासलपुर ग्राम में भाद्रप्रद शुक्ला त्रयोदशी संवत् १९७६ को पू० मातेश्वरी रूणीबाई की कोख से हुवा था । आपका पूर्व नाम चिरंजीलाल था । आप खण्डेलवाल वैश्य जाति छाबड़ा गोत्र से सम्बन्ध रखते हैं । बचपन से ही धार्मिक रुचि थी। आप बालब्रह्मचारी रहे । आप जैसे जसे बड़े हुए वैसे वैसे ही संसार को असार जानकर उदासीनता की ओर बढ़ते गये जिसके फलस्वरूप आपने आचार्य विमलसागरजी से ईशरी में क्षुल्लक दीक्षा लो। तत्पश्चात् श्री १०८ प्राचार्य देशभूषणजी महाराज से माघ शुक्ला सप्तमी २०२५ को जयसिंहपुरा में मुनि दीक्षा ली। दीक्षा के बाद अनेकों स्थानों पर चातुर्मास किए । आपने फुलेरा चातुर्मास किया तथा यहीं पर समाधिमरण किया। . . it:1.3
SR No.010188
Book TitleDigambar Jain Sadhu Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherDharmshrut Granthmala
Publication Year1985
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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