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________________ ३२२ ] दिगम्बर जैन साधु ब्रह्मचारी "संभवकुमार को" क्षुल्लक दीक्षा दी गयी और उसी वक्त आपको श्री क्षुल्लक १०५ बाहुबली नाम दिया गया। बुधवार तारीख २६ फरवरी १९७५ माघ बदी प्रतिपदा को दोपहर के ४.११ बजे तारंगा सिद्ध क्षेत्र में आचार्य श्री १०८ देशभूषण मुनिश्री ने आपको मुनि दीक्षा दी । आपने उस वक्त निश्चयपूर्वक अपने वस्त्रों का और सर्वस्व का त्याग किया और १०८ बाहुवली मुनि बन गये । जिसके बाद आपने गिरनार होकर दक्षिण भारत की तरफ विहार किया। सन् १९७६ को आपका चातुर्मास कोथली-कुपानवाडी में हुआ । जहाँ पर आपने आचार्य श्री १०८ देशभूषण मुनिश्री को शांतिगिरी का कार्य करने में हाथ बँटाया था और वहां पर भी एक बड़े क्षेत्र का निर्माण जैसा कि जयपुर में चूलगिरी का है, हो रहा है। मुनिश्री समतिसागरजी महाराज .. ___ अगहन बदी अमावस्या विक्रम सं० १९५२ में वृन्दावन मथुरा श्रेष्ठी श्री रामदयालजी गर्ग के यहां पर अग्रवाल जाति में जन्म लिया था। आपने हिन्दी की पूर्ण शिक्षा प्राप्त की। जैनागम के अनेकों ग्रंथों का विधिवत पारायण किया तथा संस्कृत, प्राकृत, हिन्दी, अंग्रेजी के अच्छे प्रवक्ता बन गये । आपने दिव्यसन्देश, सामायिकध्यानदर्पण, अहिंसा की पुकार, जैन : धर्म प्रकाश, नामक ग्रन्थों को लिखकर समाज को नई दिशा दी। जहानाबाद में आपने व्रती गुरुकुल की स्थापना कराई । सामाजिक क्षेत्र में आपका काफी योगदान रहा । जीवन में वैराग्य भावना थी अत: पायसागरजी महाराज से सं० २००५ में सातवीं प्रतिमा के व्रत धारण किए एवं अयोध्याजी में आचार्य देशभूषणजी महाराज से सं० २००६ में क्षुल्लक दीक्षा ली । अन्त समय में मुनि बनकर समाधि प्राप्त की।
SR No.010188
Book TitleDigambar Jain Sadhu Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherDharmshrut Granthmala
Publication Year1985
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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