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________________ २६० ] दिगम्बर जैन साधु - . प्रायिका चन्द्रमती माताजी - - ... .. . पूज्य प्रायिका रत्न विदुषी १०५ श्री चन्द्रमती माताजी अल्प उम्रवाली निशदिन पठन पाठन ज्ञान, ध्यान, तप, त्याग व संयम में लवलीन रहती हैं आपकी उम्र करीब ३५ वर्ष की है आपका जन्म नावाँ ( कुचामन रोड ) में विक्रम संवत् २००५ . कार्तिक कृष्णा चतुर्दशी को हुआ था। दीपावली का दिन था, चारों तरफ रोशनी ही रोशनी फैल रही थी इसलिए आपका जन्म . नाम रोशनवाई रखा गया पिताजी का नाम श्रीमान सेठ सीतारामजी गोधा एवं माता का नाम श्री वृजेश्वरीबाई था। : जब आपकी उम्र पाँच वर्ष की हुई तब माता पिता ने पढ़ने हेतु . विद्यालय में भरती किया। पढ़ने में आप बहुत तेज थीं परीक्षा में ... भी सबसे प्रथम उत्तीर्ण होती थीं । विद्यालय में पांचवी कक्षा तक अध्ययन किया। साथ साथ माता पिता जैन धर्म के संस्कार भी डालते गये । माता पिता को आपके : प्रति बहुत ही लाड प्यार था जब आपकी उम्र १६ वर्ष की हुई तब आपका पाणिग्रहण खाचरियावास ! निवासी श्रीमान् सुकुमालचन्दजी के साथ विक्रम संवत् २०२१ में हुआ था आपका सुहाग दस वर्ष : तक रहा । आगे पाप कर्म के उदय से आपके पति श्री सुकुमालचन्दजी का अल्प उम्र में ही स्वर्गवास , हो गया । इस भारी दुःख का कोई पार नहीं, जो वैधव्य स्त्री होती है वो ही इन दु:खों को जान ' सकती है पति का वियोग होना स्त्रियों के लिए बहुत दुःख की बात है परन्तु इतना भारी दु ख आने पर भी आपने रोने धोने व शोक संताप की तरफ मन को न लगाकर निशदिन धर्म के प्रति अपने मन को लगाकर दिन व्यतीत करते थे यह संसार प्रसार है दुःखमय है प्रति समय आयु क्षीण होती जाती है मनुष्य जन्म बार बार मिलने वाला नहीं है ऐसा विचार कर आपने एक साल में ही आचार्य कल्प श्री श्रुतसागरजी महाराज के संघ में प्रा० सन्मति माताजी के पास आ गये। आने के बाद आ० विशुद्धमतीजी, विनयमतीजी व सन्मतिमाताजी से पठन पाठन अध्ययन किया। इसप्रकार वैराग्य . के भाव बढते गये । माताजी ने सबसे प्रथम शान्तिवीर नगर में आचार्य कल्प १०८ श्री श्रुतसागरजी महाराज से पंचम प्रतिमा के व्रत लिये और त्याग व संयम को कष्ट नहीं जाना । आपने सुजानगढ़ में आ० कल्प श्री १०८ सन्मतिसागरजी महाराज से सप्तम प्रतिमा के व्रत ग्रहण किये । सप्तम. प्रतिमा लेने पर भी आपका मन तृप्त नहीं हुआ। फिर आपने विक्रम संवत् २०३४ में कार्तिक कृष्णा प्रतिपदा ( एकम ) के दिन नागौरं में पूज्य आचार्य कल्प १०८ श्री सन्मतिसागरजी महाराज के ।
SR No.010188
Book TitleDigambar Jain Sadhu Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherDharmshrut Granthmala
Publication Year1985
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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