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________________ दिगम्बर जैन साधु [२८९ पार्श्वमती माताजी अजमेर वालों की प्रेरणा से आपने सप्तम प्रतिमा के व्रत ग्रहण किये । कुछ समय उपरान्त आपने मुनि श्री १०८ श्री मल्लिसागरजी महाराज से सं० २००३ जयपुर में क्षुल्लक दीक्षा ग्रहण कर ली और आपका नाम क्षुल्लक विजयसागर रखा। कुछ अशुभ कर्मों के उदय से आप को रोगों ने घेर लिया । पर आप कष्टों से डरने वाले नहीं थे श्राप दृढ़ता से रोगों का सामना करते रहे। सं० २०२८ टोडारायसिंह में आप श्री ने मुनि दीक्षा प्राचार्य क० श्री सन्मतिसागरजी महाराज से ली । आपका जीवन अत्यन्त सरस है तथा अनेक प्रकार के कठिन व्रत उपवास करते हैं। वर्तमान में आप अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोगी १०८ मुनिराज अजितसागरजी महाराज के संघ में रह कर निरन्तर धर्म ध्यान सेवन करते हुए चर्या का पालन करते हैं। मुनिश्री पदमसागरजी महाराज . . .. kania आप पा० क० श्री सन्मतिसागरजी महाराज द्वारा दीक्षित हैं, विशेष परिचय अप्राप्य है। ... . .. मुनिश्री कुन्थुसागरजी महाराज ''. आप आ० क० श्री सन्मतिसागरजी महाराज द्वारा दीक्षित हैं, विशेष परिचय अप्राप्य है ।
SR No.010188
Book TitleDigambar Jain Sadhu Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherDharmshrut Granthmala
Publication Year1985
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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