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________________ २७० ] दिगम्बर जैन साधु प्राधिका शीतलमतीजी C HAL ..१०५ श्री शीतलमती माताजी की TA आयु इस समय ४२ वर्ष की है आपका स्वभाव अति ही शीतल है । आपका जन्म गाँवडी में श्रीमान् न्यालचन्दजी व माता झकुबाई की कोख से हुआ प्रापका. जन्म नाम गेंदीबाई रक्खा आपके दो भाई तीन बहन हैं उसमें सबसे छोटे आप ही हैं । आपका विवाह साबला निवासी श्री गोरधनलालजी से हुआ परन्तु ५ महिने पश्चात् ही पति का तीन दिन की बुखार में ही स्वर्गवास हो गया १८ वर्ष की आयु में ही ऐसी अवस्था देखनी पड़ी। छोटी उम्र में ही इस पर्याय के दुःख का अनुभव करते हुये अपना समय स्वाध्याय में बिताया। धर्म शिक्षा नहीं मिलते हुये भी आपने अपना जीवन इस तरफ लगाने का ही भाव बनाया । साबला में ज्ञानमती माताजी का आवागमन हुआ उन्हीं की प्रेरणा से आपके विचार बदलते गये फिर आपका मन घर में नहीं लगा और माताजी के साथ ही वहाँ से चले गये कुछ दिन पश्चात् ही आपने प्रतापगढ़ में सं० २०२५ में प्रा० शिवसागरजी महाराज से श्रावण शुक्ला पूर्णिमा को दूसरी प्रतिमा के व्रत ले लिये। फिर आप संघ में ही रहने लगी और धर्म ध्यान करने लगी. महावीरजी में आपने प्रा० शिवसागरजी म० के चरणों में दीक्षा का नारियल चढ़ाया परन्तु दुर्भाग्यवश आ० म० का स्वर्गवास हो गया दीक्षा नहीं हो सकी फिर आपने आ० क० श्रुतसागरजी म. से उदयपुर में सप्तम प्रतिना ग्रहण की । आपने चारों धाम की यात्रा की और फिर आकर दीक्षा का नारियल साहपुर में चढ़ाया और आपने दीक्षा मदनगंज-किशनगढ़ में ली सं० २०२६ में क्षुल्लिका के रूप में प्रा० क० श्रुतसागरजी म० से ली और रेनवाल किशनगढ़ में आ० दीक्षा सं० २०३२ में उन्हीं से ली । दीक्षा के बाद आपने अपना पठन पाठन में मन लगाया और श्री अजितसागरजी म. से पढ़ना. शुरू किया अब आप दैनिक कार्य सुचारू रूप से करती रहती हैं । स्वास्थ्य कमजोर रहने पर भी आत्म बल में जितना होता है उतना उपवास व्रत भी करती हैं इस प्रकार आत्म कल्याण की भावना बनी रहे यही हमारी भावना है।
SR No.010188
Book TitleDigambar Jain Sadhu Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherDharmshrut Granthmala
Publication Year1985
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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