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________________ दिगम्बर जैन साधु [ २६६ आदर्शता के साथ जीवनयापन किया उसी का परिणाम है कि सहर्ष दीक्षा लेकर आत्म कल्याण की ओर अग्रसर हैं तथा उनके सुयोग्य युगल पुत्र एवं सम्पूर्ण परिवार उनकी इस आत्मकल्याण की भावना में बड़े सहायक रहे हैं। यह कहना होगा कि पण्डितजी ने जीवन में सभी कार्य सुन्दर रीति से सम्पन्न किए उसी का परिणाम है कि इनका यह सम्पूर्ण जीबन आदर्श रहा। आचार्य संघ के साथ रहकर धर्मध्यान करते रहे थे। संघ का विहार श्री महावीरजी की ओर हुवा तब आपने श्री महावीरजी में मुनि दीक्षा ली। संघ का विहार सुजानगढ़ की ओर हुवा तब कालू चार्तुमास के बाद विहार हुवा कि बलूदाँ राजस्थान में आपकी समाधि हो गई। आपने जैन समाज के विद्वानों को एक नई दिशा दी तथा त्याग मार्ग को स्वीकार कर आत्म कल्याण किया । प्रात्मगोपन की वृत्ति के कारण आप विज्ञापन बाजी और प्रचार प्रसार की भावना से कोसों दूर रहें धन्य है ऐसा मोहक व्यक्तित्व । मापिका सरलमतीजी आपका जन्म श्रावण शुक्ला १३ सं० १९६० में मध्य प्रान्त के टीकमगढ़ में श्रेष्ठी श्री चुन्नीलालजी के यहाँ पर हुमा । आपकी माता का नाम सुगनबाई था । आपका पूर्व नाम ब्र० सुमित्राबाई था । उदयपुर में वैसाख सुदी १० सं० २०२६ में आचार्य कल्प श्री श्रुतसागरजी महाराजजी से आपने आर्यिका दीक्षा धारण की। आप अपने जीवन को सफल बना रही हैं । आपका त्याग प्रशंसनीय है। RTAL
SR No.010188
Book TitleDigambar Jain Sadhu Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherDharmshrut Granthmala
Publication Year1985
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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