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________________ २२८ ] दिगम्बर जैन साधु निश्री समाधिसागरजी महाराज आपने पू० आचार्य श्री धर्मसागरजी महाराज से पुनः दीक्षा ली थी। २० वर्षीय मुनि जीवन शरीर की शिथिलता देखकर आपने मुनिपद छोड़ दिया था । आप श्री मल्लिसागरजी जालना वालों के नाम से प्रसिद्ध थे। आचार्य श्री धर्मसागरजी महाराज के विशेष संबोधन से आपने पुनः सलूम्बर में मुनि दीक्षा धारण की तथा संयम एवं कठोरता के साथ आपने आचार्य श्री के सान्निध्य में यम समाधि लेकर शरीर को छोड़ा तथा आत्मकल्याण किया । धन्य है आपकी सम्यक् श्रद्धा जिसने आपको पुनः सन्मार्ग पर लगाया। मनिश्री मानन्दसागरजी महाराज श्री ताराचन्दजी का जन्म भारतवर्ष की राजधानी दिल्ली में हुवा था। सामान्य उर्दू में आपकी शिक्षा हुई । आपने कपड़े का कार्य किया तथा गृहस्थ धर्म का पालन किया । आपके २ लड़के हैं । आचार्य श्री धर्मसागरजी महाराज का दिल्ली की ओर विहार हुवा तब से आप आचार्य श्री के सान्निध्य में रहकर आत्म साधना करते रहे । उदयपुर के समीप ऋषभदेवजी में आपने प्राचार्य श्री से मुनि दीक्षा ली । पाडवा ( उदयपुर ) में समाधि लेकर शरीर का त्याग किया। जहाँ पर आपके पार्थिव शरीर का संस्कार किया गया था वह स्थान प्रानन्दगिरी के नाम से घोषित कर दिया गया है।
SR No.010188
Book TitleDigambar Jain Sadhu Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherDharmshrut Granthmala
Publication Year1985
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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