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________________ २२६ ] दिगम्बर जैन साधु .. मुनिश्री पूर्णसागरजी महाराज पूज्य मुनि श्री १०८ श्री पूर्णसागरजी महाराज का. जन्म अषाढ़ शुक्ला ८ रविवार संवत् १९७० में कुण्डा ग्राम (कुण्डलगढ़) तहसील सराड़ा में हुआ था । आपके गृहस्थावस्था का नाम श्री पूनमचन्दजी था । आपने वीसा नरसिंहपुरा जाति में जन्म लिया था ।आपके पिता का नाम श्री हेमराजजी व माता का नाम कस्तूरी वाई था । आपकी माता की श्रद्धा भी धर्म में अधिक थी। उन्होंने भी दस दस उपवास व अन्य कई व्रतादिक किये । आपने गृहस्थावस्था में रहकर पति पत्नी दोनों ने एक माह का उपवास किया था साथ ही दस दस उपवास भी किये थे । आपने घर में रहकर ५ वर्ष तक ब्रह्मचर्य व्रत धारण किया । आपने ५ वर्ष तक सरपंच रहकर जनता का भला किया । घर में ही वैराग्य भावना का चिन्तवन करते थे। आप संवत् २०३२ के मंगसर सुदी चतुदर्शी गुरुवार के दिन सारे गांव को भोजन करा कर, घर का त्याग करते हुए मुजफ्फरनगर में १०८ आचार्य श्री धर्मसागरजी महाराज के पास पधारे। तथा आचार्य श्री से माघ शुक्ला पंचमी संवत् २०३२ को मुनि दीक्षा धारण की। महाराज श्री ने झाडोल ( सराडा) में वि० सं० २०३६ में पूज्य मुनि श्री संभवसागरजी महाराज के साथ वर्षायोग धारण किया एवं श्रावण माह में अन्न का त्याग रखा और एकान्तर आहार पर उतरते थे। आप बारह सौ चौंतीस व्रत के अन्तर्गत भाद्रपद माह में सोलह कारण व्रत के ३२ (बत्तीस) उपवास कर रहे थे। इसी व्रत के अन्तर्गत आपने यम सल्लेखना धारण करली । ३० उपवास की . समाप्ति के पश्चात् रात्रि को बारह बजे आप एक दम सोये हुए उठ बैठे और पद्मासन लगाकर णमोकार मन्त्र का ध्यान करते हुए भाद्रपद शुक्ला १५ को नश्वरदेह को त्याग दिया । धन्य हैं ऐसे . तपस्वी मुनिराज ।
SR No.010188
Book TitleDigambar Jain Sadhu Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherDharmshrut Granthmala
Publication Year1985
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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