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________________ दिगम्बर जैन साधु [ २०५ बालापन में वैधव्य आजानेसे पिताने ग्रापको घर पर रखकर पढ़ाया। आपने कक्षा ६ तक स्कूली शिक्षा प्राप्त करनेके बाद जैन पाठशालामें चतुर्थ भाग तक जैन धर्मकी शिक्षा प्राप्त की । इसके बाद घर पर ही अध्ययनके द्वारा जैन धर्म का ज्ञान प्राप्त करती रहीं । सन् १९५८ में श्रार्यिका अनन्तमतीजी विहार करती हुई आपके ग्राम में पहुँचीं । आर्यिका माताजी के सदुपदेशों से प्रभावित होकर संसार की आसारता से भयभीत हो आपने घर का परित्याग कर दिया और आधिकाजी के साथ विहार करती हुई धर्मध्यान पूर्वक व्रतों का अभ्यास करने लगीं । युरई में परम पूज्य मुनिराज धर्मसागरजी महाराज के दर्शनों का भी लाभ मिला । मुनि श्रीके दर्शन कर आपके अन्तर में वैराग्य की भावना का उदय हुग्रा फलतः आपने मुनि श्रीसे कार्तिक शुक्ला एकादशी विक्रम सम्वत् २०२० के दिन ७ वीं प्रतिमा तक के व्रत अङ्गीकार कर लिए । इस प्रकार परिणामों में निर्मलता आई, फलतः कार्तिक शुक्ला एकादशी विक्रम सम्वत् २०२१ के शुभ दिन तपोनिधि श्राचार्य श्री शिवसागरजी महाराज से अपार जन समूह के बीच प्रतिशय क्षेत्र पपौरा में आपने क्षुल्लिका की दीक्षा ली ।
SR No.010188
Book TitleDigambar Jain Sadhu Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherDharmshrut Granthmala
Publication Year1985
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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