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________________ ... . . :..:..:. :.::... A दिगम्बर जैन साधु [ १६७ प्रापिका जिनमतीजी आपका शुभ जन्म म्हसवड़ (महाराष्ट्र ) में हुआ। आपका जन्म का नाम प्रभावती था। बाल अवस्था में ही माता-पिता का वियोग हो गया । आप एक भाई और एक बहिन सहित आश्रय रहित हो गई, तब आपका लालन पालन मामा मामी के घर हुश्रा । पोडशो अवस्था में ज्ञानमती माताजी का सम्पर्क मिला और आप व्रती बन गईं । आजीवन ब्रह्मचारिणी बनकर माताजी के साथ आ गई और माधोराजपुरा (राजस्थान) में आचार्य श्री वीर सागरजी महाराज से क्षुल्लिका को दीक्षा धारण की । आप कुशाग्र बुद्धि के द्वारा परम विदुषी रत्न हैं । बड़े बड़े ग्रन्थों का अध्ययन किया। सीकर नगर में आचार्य श्री शिवसागरजी महाराज से आपने आर्यिका दीक्षा ग्रहण की । आप आयिका के गुणों को अत्यन्त ही उत्कृष्ट रीति से पालन करती हैं। दर्शन ज्ञान सहित आपका चरित्र सराहनीय है। आप संघस्थ नवदीक्षित आर्यिकाओं की देख रेख, वैयाव्रत और सेवा के कार्यों में अत्यन्त दक्ष हैं । भ्रातृत्व स्नेह से भरपूर होकर परस्पर वात्सल्य का रूप इनमें देखने को मिला। पठन पाठन और ज्ञानोपयोग इनकी रुचि के उज्ज्वल उदाहरण हैं।
SR No.010188
Book TitleDigambar Jain Sadhu Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherDharmshrut Granthmala
Publication Year1985
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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