SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 232
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दिगम्बर जैन साधु १८४ ] वर्तमान में श्राप मांगीत गी का उद्धार कर रहे हैं । आपने इस क्षेत्र के लिए १ करोड़ का योगदान दिलाया है । धन्य है वो धरा, धन्य है वो माता ! ! ! धन्य है वो पिता, धन्य है वो कुल, धन्य है वो जाति जिन्होंने ऐसे तेजस्वी रत्नों को प्रसूत कर धर्मध्वजा फहराई है । ऐसे महान् सन्त के पुनीत चरणों में मेरा शत शत वंदन हो । धन्य है वो माता, धन्य है वो पिता । जिनके पावन दर्शन से नश जावे मिथ्यातम का माथा ॥ ¤¤¤ X * ¤¤¤¤ क्षुल्लक योगीन्द्रसागरजी क्षुल्लक श्री १०५ योगीन्द्रसागरजी का गृहस्थावस्था का नाम हेमचन्द्रजी था । आपका जन्म आज से लगभग ६५ वर्ष पूर्व राठोड़ा (उदयपुर) राजस्थान में हुआ था । आपके पिता श्री पाढ़ाचन्द्रजी थे । जो खेती एवं व्यापार करते थे । आपकी माताजी का नाम माणिकबाई था । आप नरसिंहपुरा जाति के भूषरण हैं । आपकी धार्मिक एवं लौकिक शिक्षा साधारण ही हुई । विवाह भी हुआ । परिवार में आपके तीन भाई, एक बहिन, चार पुत्र एवं चार पुत्रियां हैं । आचार्य श्री १०८ शिवसागरजी की सत्संगति के कारण आपमें वैराग्य भावना जागृत हुई । अतः विक्रम संवत् २०२४ में उदयपुर में आचार्य श्री १०८ शिवसागरजी महाराज से आपने क्षुल्लक दीक्षा धारण कर ली । आपने प्रतापगढ़ आदि स्थानों पर चातुर्मास कर धर्म की आशातीत वृद्धि की । Xx xx £ Xx
SR No.010188
Book TitleDigambar Jain Sadhu Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherDharmshrut Granthmala
Publication Year1985
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy