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________________ दिगम्बर जैन साधु [ 175 श्री रामपालजी की प्रथम पत्नी का शादी के कुछ वर्षों बाद ही देहावसान हो जाने से दूसरी शादी कर दी गई / अपने गृहस्थी के कर्तव्यों के साथ ही भाई रामपालजी धार्मिक कर्तव्यों का भी पूर्णरूपेण पालन करते हुये सुखमय जीवन व्यतीत कर रहे हैं। घासीलालजी को प्रारम्भिक स्कूली शिक्षा विल्कुल भी नहीं हुई, घर पर ही एक ब्राह्मण अध्यापक से आपने मात्र बारहखड़ी की शिक्षा प्राप्त की थी। अल्प शिक्षित होने पर भी अपना उद्योग सफलता पूर्वक करते थे। जव आप मात्र 12 वर्ष की अवस्था में थे आपके पिताजी म्यादी बुखार से पीड़ित होने के कारण असमय ही में सम्वत् 1970 के बैसाख महीने में नश्वर शरीर से मोह छोड़ हमेशा के लिये संसार से विदा हो गए। पिताजी की मृत्यु के बाद अपने भाई बन्धुओं, परिजनों एवं विशेषकर श्री चिरंजीलालजी दरोगा का शुभ निमित्त पाकर आप में जैन धर्म के प्रति विशेष आस्था का उदय हुआ। ठीक भी है जब किसी जीवात्मा का कल्याण होना होता है तब वह किसी भी स्थिति में हो ज्ञानी या अज्ञानी, बाल या वृद्ध उसकी परिणति काल-लब्धि द्वारा उसी प्रकार कल्याण की ओर प्रवृत्त हो जाती है। इस विषय में उदाहरण प्रायः सबके सुनने व देखने में आते हैं / ठीक यही स्थिति आपकी भी हुई। सम्वत् 1980 में जब आपको उम्र लगभग 22 वर्ष की होने जा रही थी आपने जीवन पर्यन्त रात्रि भोजन, विना छना हुआ जल का त्याग करते हुए, दनिक जिनेन्द्र दर्शन, पूजन, प्रक्षाल आदि करने के नियम धारण कर लिये। समय का चक्र वदला और सम्वत् 2000 में एक साधारण सी बीमारी में जिनेन्द्र प्रभु की भक्ति करते हुये आपकी माताजी का देहावसान हो गया। माता की मृत्यु हो जाने से आपके अन्तर में संसार की नश्वरता का नग्न चित्र उपस्थित हुआ और आपके हृदय में वैराग्य ने प्रवेश किया तथा दिन प्रतिदिन अग्नि शिखा की तरह वैराग्य भावना का उदय होता गया। विक्रम सम्वत् 2010 में परम पूज्य आचार्यवर श्री वीरसागरजी महाराज का संघ जयपुर खानियाँ में आया हुआ था। आप संघ के दर्शनार्थ गए, एवं प्रथम वार मुनियों को आहार देने का सौभाग्य प्राप्त कर परम पूज्य मुनि श्री सन्मतिसागरजी महाराज की सत्प्रेरणा से आपने द्वितीय प्रतिमा के व्रत अंगीकार कर लिये, तथा घर चले पाए। इतने पर भी आपको संतोष नहीं हुआ, वैराग्य भावना दिन प्रति दिन बढ़ती ही गई / फलतः अपना सारा कारोबार अपने पुत्र को देकर व पुत्र मित्र परिजनों के साथ ग्रह सम्पदा का परित्याग कर, प्राचार्य शिवसागरजी महाराज का संघ सीकर ( राजस्थान ) में आया हुआ था तब, आपने पौष बदी एकम सम्वत् 2017 की शुभ घड़ी में
SR No.010188
Book TitleDigambar Jain Sadhu Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherDharmshrut Granthmala
Publication Year1985
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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