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________________ [ १६१ दिगम्बर जैन साधु मुनिश्री ज्ञानसागरजी ६ । Imastramdomart ATMER LAAmbanianita PRASARDAA राजस्थान प्रदेश में जयपुर के समीप राणोली ग्राम है । वहाँ पर एक खण्डेलवाल जैन कुलोत्पन्न छाबड़ा गोत्री सेठ सुखदेवजी रहते थे। उनके पुत्रका नाम श्री चतुभुजजी और स्त्रीका नाम घृतवरीदेवी था। ये दोनों गृहस्थ-धर्म का पालन करते हुए रहते थे। उनके पांच पुत्र हुए । जिनके नाम इस प्रकार हैं-१. छगनलाल, २. भूरालाल, ३. गंगाप्रसाद, ४. गौरीलाल और ५. देवीदत्त । इनके पिताजी का वि० सं० १६५६ में स्वर्गवास हो गया, तब सबसे बड़े भाई की आयु १२ की थी और सबसे छोटे भाईका जन्म तो r: .-- पिताजी की मृत्यु के पीछे हुआ था । पिताजी के असमय में · स्वर्गवास हो जाने से घर के कारोबार की व्यवस्था बिगड़ गई और लेन-देन का धन्धा बैठ गया। तब बड़े भाई छगनलालजी को आजीविका की खोज में घर से बाहर निकलना पड़ा और वे घूमते हुए गया पहुंचे और एक जैन दुकानदार की दुकान पर नौकरी करने लगे। पिताजी की मृत्यु के समय दूसरे भाई और प्रस्तुत ग्रन्थ के कर्ता भूरामलकी आयु केवल १० वर्ष की थी और अपने गांव के स्कूल को प्रारम्भिक शिक्षा प्राप्त की थी। आगे की पढ़ाई का साधन न होने से एक वर्ष बाद अपने बड़े भाई के साथ आप भी गया चले गये और किसी जनी सेठ की दुकान पर काम सीखने लगे। E - लगभग एक वर्ष दुकान का काम सीखते हुआ कि उस समय स्याद्वाद महाविद्यालय बनारस के छात्र किसी समारोह में भाग लेने के लिए गया आये उनको देखकर बालक भूरामल के भाव भी पढ़ने को बनारस जाने के हुए और उन्होंने यह बात अपने बड़े भाई से कही। वे घर की परिस्थितिवश अपने छोटे भाई भूरामल को बनारस भेजने के लिए तैयार नहीं हो रहे थे, तब आपने पढ़ने के लिए अपनी दृढ़ता और तीव्र भावना प्रकट की और लगभग १५ वर्ष की उम्र में आप बनारस पढ़ने . चले गये। जब आप स्याद्वाद महाविद्यालय में पढ़ते थे तब वहां पर पं० बंशीधरजी, पं० गोविन्दरायजी, पं० तुलसीरामजी आदि भी पढ़ रहे थे। आप और सब कार्यों से परे रहकर एकाग्र विद्याध्ययन में संलग्न हो गये । जहां आपके सब साथी कलकत्ता आदि की परीक्षाएं देने को महत्व देते थे वहां आपका
SR No.010188
Book TitleDigambar Jain Sadhu Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherDharmshrut Granthmala
Publication Year1985
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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