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________________ दिगम्बर जैन साधु फलतः विक्रम सम्वत् १६६७ में आचार्यवर श्री वीरसागरजी महाराजसे सकनेरमें क्षुल्लिका की दीक्षा ग्रहण करली। इस अवस्थामें आकर आपने कठोर व्रतोंका अभ्यास किया और ज्ञान-चारित्रमें उत्तरोत्तर वृद्धिकी जिससे आपकी आत्मामें प्रबल वैराग्यकी ज्योति जगमगा उठी, फलतः रविवार आसौज बदी पूर्णमासी विक्रम सम्वत् २००२ में प्रातः समय झालरापाटन में अपार जन-समूहके बीच जय-ध्वनिके साथ आचार्य वीरसागरजी महाराजसे आर्यिकाकी दीक्षा ग्रहण करली। इस प्रकार अपनी आत्माको तप और साधनासे उज्ज्वल करती हुई जान और चारित्रके माध्यमसे मुक्तिके मार्ग पर अग्रसर हैं । प्रायिका सिद्धमतीजी दिल्लीमें अग्रवाल सिंहल गोत्रोत्पन्न श्रीमान् लाला नन्दकिशोरजीके घर माता श्री कट्टोदेवी की कुक्षिसे विक्रम सम्वत् १९५० के आसौजमें आपका जन्म हुआ । आपका नाम दत्तोबाई था। आपके पिता श्री उदार हृदयी, होनहार और अच्छे कार्यकर्ता थे । घरकी स्थिति सम्पन्न थी, तथा दिल्लीमें काठसे तैयार किया हुआ सामान बेचते थे । जव आपकी वय ८ वर्षकी थी तब आपका विवाह दिल्लीमें ही श्रीमान् लाला मौरसिंहजीके सुपुत्र श्री वजीरसिंहजीके साथ सम्पन्न हुआ था । आपके स्वसुर रेल विभागमें माल गोदामके सबसे बड़े अधिकारी थे । विवाहके ५ वर्ष बाद ही जब आपकी उम्र १३ वर्षकी थी आपके ऊपर दुःखके वज्रका प्रहार हुआ और आपके पतिका देहावसान हो गया। इस बालापन की अवस्थासे ही आपको वैधव्य धारण करना पड़ा। इस घोर संकटके आ जानेसे आपके पिताने दिल्लीमें एक विदुषी को आपकी शिक्षाके लिये निश्चित किया और उन्हींके द्वारा आपकी लौकिक व धार्मिक शिक्षा हुई।
SR No.010188
Book TitleDigambar Jain Sadhu Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherDharmshrut Granthmala
Publication Year1985
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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