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________________ [ १३ ] में अपार उत्साह था, लालाजी का यह सौभाग्य हुआ कि उन्होंने सोनागिरि सिद्धक्षेत्र पर आचार्य शांतिसागरजी श्री वीरसागरजी और नेमसागरजी महाराज के दर्शन किये आपके पिताजी, माताजी और आपने तथा अनेक भाई बहिनों ने नियम लिये। भ० महावीर स्वामी के २५०० वें निर्वाण महोत्सव पर एक छोटी सी पुस्तक लिखी जिसमें दिल्ली में पधारे चारों सम्प्रदाय के मुनिराज और प्राचार्यों का परिचय था परमपूज्य ऐलाचार्य विद्यानंदजी महाराज ने उस पुस्तक को पसंद किया और कहा कि जिसमें समस्त दि० जैन समाज के आचार्य मुनिगण त्यागियों का परिचय हो ऐसी पुस्तक छपनी चाहिये । इस सम्बन्ध में लालाजी की प्रबल भावना थी कि आचार्य शांतिसागरजी महाराज से लेकर आजतक हमारे जितने मुनिराज हैं उन सभी का परिचय एक पुस्तक में हो। तदनुरूप ग्रन्थ तैयार किया गया और उसके प्रकाशन का भार लालाजी की ओर से ही वहन किया गया । हमारी श्री जिनेन्द्र देव से प्रार्थना है कि लालाजी सतत जिन शासन की सेवा करते रहें।
SR No.010188
Book TitleDigambar Jain Sadhu Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherDharmshrut Granthmala
Publication Year1985
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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