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________________ १२४ ] दिगम्बर जैन माधु तीर्थ वंदना एवं सल्लेखना महोत्सव के पश्चात् आपने ससंघ उत्तरप्रदेश के सहारनपुर नगर की ओर प्रस्थान किया। मार्ग में मुजफ्फर नगर आदि स्थानों पर धर्मप्रभावना करते हुए वर्षायोग से एक माह पूर्व आप सहारनपुर पहुंचे इस वर्ष (२०३२ ) का वर्षायोग आपने सहारनपुर में ही स्थापित किया था। वर्षायोग सम्पन्न होने के पश्चात् आपने पुनः मुजफ्फरनगर की ओर विहार किया यहां के शीतकालीन त्रैमासिक प्रवास काल में संघस्थ दो मुनिराजों ने आपके चरणसान्निध्य में सल्लेखना पूर्वक समाधिमरण को प्राप्त किया। यहीं पर आपके कर कमलों से ११ दीक्षायें सम्पन्न हुई। यहां से शामली, कैराना, कांदला आदि ग्रामों में विहार करते हुए बड़ौत नगर में वि० सं० २०३३ का वर्षायोग सम्पन्न किया। कांदला में आ० क० श्री श्रुतसागरजी महाराज जो कि आपके गुरु भाई भी हैं आपके दर्शनार्थ राजस्थान प्रान्त से विहार करते हुए संघ में सम्मिलित हुए। बड़ौत चातुर्मास में भी वे साथ ही थे । वड़ौत चातुर्मास के पश्चात् ससंघ आपने दिल्ली महानगर तथा रोहतक, रेवाड़ी ( हरियाणा प्रान्त ) आदि की ओर विहार करके राजस्थान प्रान्त में पुनः प्रवेश किया। राजस्थान के प्रसिद्ध नगर मदनगंज-किशनगढ़ में वि० सं० २०३४ का वर्षायोग अभूतपूर्व धर्म प्रभावना के साथ सम्पन्न किया एवं वर्षायोग के पश्चात् अजमेर नगर की ओर प्रस्थान किया। अजमेर में शीतकालीन प्रवास व्यतीत कर आपने ससंघ व्यावर की ओर मंगल विहार किया। साथ में प्रा० क० श्री श्रुतसागरजी महाराज थे, वे अजमेर ही रुक गये क्योंकि उन्हें अपने संघ में मिलना था जिसे छोड़कर वे आपके दर्शनार्थ उत्तरप्रदेश की ओर पहुंचे थे। व्यावर के पश्चात् भीलवाड़ा होते हुए संघ भीण्डर ( उदयपुर ) पहुंचा । आपके ससंघ सान्निध्य में पंचकल्याणक प्रतिष्ठा अत्यन्त प्रभावना के साथ सम्पन्न हुई। इसी महोत्सव के अवसर पर शान्तिवीर दिगम्बर जैन सिद्धान्त संरक्षिणी सभा का नैमित्तिक अधिवेशन भी हुआ । सभा ने धर्म रक्षार्थ आपसे मार्गदर्शन भी प्राप्त किया। भीण्डर से उदयपुर के लिए विहार किया। वि० सं० २०३५ का वर्षायोग उदयपुर में सम्पन्न किया। इस वर्ष भी दो दीक्षायें आपके कर कमलों से सम्पन्न हुई । उदयपुर के वर्षायोग के पश्चात् उदयपुर सम्भाग के छोटे छोटे ग्रामों में आपने मंगल विहार किया और इन ग्रामों में फैली कुरीतियों को दूर करने की प्रेरणा अपने उपदेशों में दी। कहीं कहीं तो आपके उपदेशामृत से प्रेरणा पाकर जीर्णशीर्ण दशा में स्थित मन्दिरों को जीर्णोद्धार करने का संकल्प समाज ने किया। विहार मार्ग में ऐसे ग्राम भी आए जहां इतने विशाल संघ को रहने की व्यवस्था भी नहीं बन पाती थी, आपसे लोगों ने निवेदन भी किया कि बड़े संघ के रहते ग्रीष्मकाल में आपको किन्हीं बड़े स्थानों पर ही विहार करना चाहिए ताकि संघ की व्यवस्था ठीक प्रकार से हो सके । प्राणी मात्र के कल्याण की भावना जो कि सदैव आपके हृदय में विद्यमान रहती है वह शब्दों में प्रगट हुई, आपने कहा कि "बड़े नगरों व ग्रामों में प्रायः साधु विचरते ही हैं । किन्तु इन छोटे छोटे ग्रामों में रहने वाले लोगों में व्याप्त अज्ञानान्धकार
SR No.010188
Book TitleDigambar Jain Sadhu Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherDharmshrut Granthmala
Publication Year1985
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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