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________________ क्षुल्लिका अजितमली माताजी जन्म स्थान- पोलीवेढे ( जि. कोल्हापुर) जन्म सन् १९०४ पिता का नाम- श्री नानासाहबजी माता का नाम- श्री कृष्णा वाईजी माताजी का पूर्व नाम-श्री मरुदेवी Murt दो वर्ष की उम्र में पिताजी व दो भाई एक बहिन की प्लेग की बीमारी से मृत्यु हुई तथा २३ वर्ष की उम्र में मां ने विवाह कर दिया। १२ वर्ष की आयु में पति वियोग । २० वर्ष की आयु में आ० शांतिसागरजी से दूसरी प्रतिमा के व्रत धारण किये । सन् १९२८ में पू० प्रा० शांतिसागरजी महाराज से तीर्थराज सम्मेदशिखरजी में क्षुल्लिका दीक्षा धारण की, उसीसमय से आपने अपने जीवन को तप-त्याग के मार्ग में लगाया हुआ है ? आपने अपने जीवन में अनेकों उपवास किये, जिनमें मुख्यतः सोलह कारण के ३ वार ३२-३२ उपवास किये, दो बार सिंहनिःक्रीडित व्रत किये । सांगली में आपने १२३४ उपवास किये । चारित्र चक्रवति प्रा० शांतिसागरजी महाराज की अंतिम शिष्या पू० माताजी ही हैं । आप वयोवृद्ध, तपोवृद्ध विविध गुण सम्पन्न हैं । आगमानुकूल चारित्र, सहनशीलता एवं प्रभावशाली व्यक्तित्व के कारण जैन समाज के लिए एक उत्कृष्ट तपस्वी साध्वी हैं ।
SR No.010188
Book TitleDigambar Jain Sadhu Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherDharmshrut Granthmala
Publication Year1985
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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