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________________ प्राचार्य श्री सुधर्मसागरजी महाराज HARYANAV श्री १०८ आचार्य सुधर्मसागरजी महाराज का गृहस्थ अवस्था का नाम नन्दलालजी था। आपका जन्म चावली (आगरा) वि० सं० १९४२ में भाद्रपद शुक्ला दशमी यानी सुगन्ध दशमी के दिन हुआ था। शिक्षा और विवाह: आपकी प्रारम्भिक शिक्षा अपने गांव में ही हुई। इसके बाद आपने दिगम्बर जैन महाविद्यालय मथुरा और सेठ हीराचन्द्र गुमानचन्द्र जैन बोडिंग हाऊस बम्बई में रहकर शास्त्री (सिद्धान्त, न्याय, व्याकरण, साहित्य ) का अध्ययन किया और जैन महासभा तथा बम्बई परीक्षालय की परीक्षा देकर शास्त्री उपाधि प्राप्त की। RAJA M sex . सामाजिक-धार्मिक कार्य : ___ आपने अपने अमित अध्ययन, अनुभव, अभ्यास, अध्यवसाय से हिन्दी, संस्कृत, अंग्रेजी, मराठी, गुजराती भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया । आप श्रेष्ठ वक्ता और सुयोग्य लेखक तथा टीकाकार एवं सम्पादक थे। सामाजिक-धार्मिक विषयों पर आपने सुरुचिपूर्ण लघु पुस्तकें भी लिखीं। आप कवि थे, आपकी कतिपय पूजन आज भी समाज में अतीव चाव से पढ़ी जाती हैं। आपने ईडर और बम्बई में रह कर वहां के शास्त्र भण्डारों को सम्हाला । आपने ज्ञान का लाभ समाज को दिया। आपने अनेक भीलों से मांस भक्षण छुड़ाया, शिकार खेलना बन्द करवाया। ठाकुर कुरासिंह को जैन ही नहीं बनाया बल्कि उनके द्वारा जैन मन्दिर भी बनवाया। आपने ईडर तारंगा में मनोज्ञ मूर्तियां विराजमान कराई। आप महासभा के सर्वदा सहायक रहे । समाजरत्न, संघभक्त, सुप्रसिद्ध सेठ पूनमचन्द्र घासीलाल जवेरी परिवार को धार्मिक
SR No.010188
Book TitleDigambar Jain Sadhu Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherDharmshrut Granthmala
Publication Year1985
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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