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________________ ९. सरल चित्त सरलता ही चित्त की विशुद्धि है। कुटिलता मलीनता है। मलीनता अनर्थकारिणी है, विशुद्धता सर्वार्थ-साधिनी। कुटिलता सर्व-हित-नाशिनी है। सरलता सर्व-हितकारिणी । न केवल अपने बल्कि सबके हित-सुख साधन के लिए सरलता अपनाएँ, कुटिलता त्यागें। नैसर्गिक स्वच्छ मन स्वभाव से ही सरल होता है । सरलता गयी तो समझो स्वच्छता गयी। सरलता खोने के तीन प्रमुख कारण हैं जिनसे कि हमें सावधान रहकर बचना चाहिए। कौनसे तीन ? तृष्णा, अहमन्यता और दार्शनिक दृष्टियाँ । तण्हा-मान-दिट्टि । इन तीनों में से किसी एक के प्रति मन में जब जितनी आसक्ति उत्पन्न होती है, तब हम उतनी ही सरलता खो बैठते हैं, उतनी ही स्वच्छता गँवा देते हैं, उतने मलीन हो जाते हैं, उतने सुख-शान्ति विहीन हो जाते हैं, उतने दुःखी हो जाते हैं। ____ जब किसी वस्तु, व्यक्ति अथवा स्थिति के प्रति तृष्णा जागती है और आसक्ति बढ़ती है, तब उसे प्राप्त करने के लिए अथवा प्राप्त हुई हो तो अधिकार में रखने के लिए हम बुरे से बुरा तरीका अपनाने पर उतारू हो जाते हैं। चोरी, डकैती, झूठ-फरेब, छल-छद्म, प्रपंच-प्रवंचन, धोखा-धड़ी आदि सब कुछ अपनाते हैं । अपने पागलपन में मन की सारी सरलता खो देते हैं। साध्य हासिल करने की आतुरता में साधनों की पवित्रता खो देते हैं । प्रिय के प्रति अनुरोध ही अप्रिय के प्रति विरोध उत्पन्न करता है। इससे हम इतने प्रमत्त हो उठते हैं कि तृष्णा पूर्ति में जो भी बाधक लगता है, उसे दूर करने के लिए, नष्ट करने के लिए असीम क्रोध, रोष, द्वेष, द्रोह, दौर्मनस्य और दुर्भावनाओं का प्रजनन करने लगते हैं और परिणामस्वरूप अपनी सुख-शान्ति भंग कर लेते हैं । मन की सरलता नष्ट कर लेते हैं।
SR No.010186
Book TitleDharm Jivan Jine ki Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyanarayan Goyanka
PublisherSayaji U B Khin Memorial Trust Mumbai
Publication Year1983
Total Pages119
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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