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________________ • नादानों की पाती को न सुनो, जो गलती से, गुमराहों से, नादानी और तास्तुर से कहते हैं कि "हायी के पांव के तले दब जाओ, मगर जैन मन्दिर में घुसकर अपनी हिफाजत न करो। इस शास्त्र का कहीं ठिकाना है ? इस तङ्ग दिली को कोई हद भी है ? आखिर इन से तास्सुय क्यों किया जाय ? क्या हुआ अगर इनके किसी ख्याल तुसको मुवाफकत नहीं हैं ? न सहो, कौन सब बातों में सब से मिलता हे १ तुम उन के गुणों को देखो, उनको पाकोजह सूरतों का दर्शन करो, उनके भावों को प्यार की निगाह से नज्जारह देखो 'ये धर्म कर्म को झलकती हुई नूरानो भूते हैं । किनों के कहने सुनने पर न जाओ । जो जैसा हो उसको वैसा ही देखो। यह अहिंसा को परम ज्योतिवाली मूर्तियां हैं, घेदों को श्रुति 'अहिंसा परमो धर्मः'कुछ इन्हों पाक बुजुर्गों की जिंदगी में अमली सूरत अख्तयार करती हुई नजर आती है। ये दुनियां के जबरदस्त रिफार्मर जबरदस्त मोहसिन और बडे ऊचे दर्जे के वाइज और प्रचारक गुजरे हैं, यह हमारी कौमी तवारीख के कीमती रन है। तुम कहां और किन में धर्मात्मा प्राणियों की तलाश करते हो, इन को देखो, इन से बेहतर साहव कमाल तुमको कहां मिलेगे ! इन में त्याग था, इन में पैराग्य था, इन में धर्म का कमाल था, 'ये इंसानी कमजोरी से बहुत ऊचे थे, इनका विताय 'जिना है, जिन्होंने मोह माया को श्रीर मन और काया को जीत लिया था ये तीर्थंकर हैं, ये परमहस है, इनमें तमना नहीं थी। बनावट नहीं थी, जो बात' थी साफ साफ थी। तुम कहते हो कि ये नग्न रहत्ते.थे, इस में ऐच क्या है परम अतनिष्ट, परम ज्ञानी कुदरत के सच्चे पुत्र, इनको पोशिश की जरूरत कर थी ? - मुनो एक मरतवह मुसलमानों का सरमस्त नामी फकीर देहली के गली कूचों में बहना मांदरजात होकर घूम रहा था औरङ्गजेब बादशाह ने देखा तन पोशश के लिये कपडे भेजे. फकीर मजजूब और वली था, कह कहा मारकर हंसा
SR No.010185
Book TitleDharm Jain Updesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDwarkaprasad Jain
PublisherMahavir Digambar Jain Mandir Aligarh
Publication Year1926
Total Pages151
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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