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________________ ८४ आसादना दोप श्री जिन मंदिर में नहीं लगाना। निम्न लिखित ८४ श्रासादना टालकर सर्वत्र सर्व ही जैन समाजको जिन मंदिर तथा जिम मंडपमें वर्ताप करना योग्य है; विरुद्ध वर्ताव करना पाप बस्यका कारण :१ मन्दिरमें खांसी कफ सखारना नहीं । २ मल मूत्र वायु उसारना नहीं ! . ३ वमन करना तथा कुरला करना नहीं ! ४ अांख, नाक, कानका मैल निकालना मह! ५ पसीना तथा शरीर का मैल डालना हों। ६ हाथ पांव के नख तोड़ना काटना नहीं। ७ फस्त खुलाना नहीं चाव पट्टी करना नहीं। ८ हाथ पांव शरीर द्रवाना नहीं। ९ तेल मर्दन तथा सुगन्ध अतर लगाना नहीं। १० पांव पसारना तथा गुा. अङ्गादि दिखाना नहीं। ११ पांव पर पांव धरना तथा ऊटके पासन बैठना नहीं । १२ उगली चटकाना तथा फोड़की खाल चौटना नहीं। . १३ आलस्य तोड़ना, भाई, छींक लेना नहीं। . . १४ भीतके सहारे वैठना तया खम सहारे वैउना नहीं। १५ शयन करना तथा बैठे हुये घना नही। १६ स्नान उबटन तेल कंधा करना नहीं। १७ गमासे पंखा तथा रूमालसे हवा लेना नहीं । १८ लाड़ोंमें आगसे तापना नहीं। १९ कपड़ा धोती आदि धोना मुखाना नहीं। २० अधों अगमें खाज खुजाना नहीं।
SR No.010185
Book TitleDharm Jain Updesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDwarkaprasad Jain
PublisherMahavir Digambar Jain Mandir Aligarh
Publication Year1926
Total Pages151
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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