SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 103
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (६) *MEEEEEEEEEKERMERCE RECH सप्त ऋषि उपदेश REPE NEEEEEEEEEEEEEEN . 'भागें पर्व ९० में चमरेन्द्र जिसने- राजा मधू को त्रिशूल रत्न दिया था पाताल से आकर मथुरा नगरी पर कोप किया और मरी फैली। ... .. . . .. पर्व ९१ - राजा 'शत्रुधन अयोध्या गया और जिनेन्द्र मांगन के बूता रचाई. इत्यादि । . पर्व ९२ में आकाश में गमन करण हारे सप्त चारण ऋषि . निग्रंथ मनीन्द्र मथुरापुरी आऐ जिनके नाम मुरमन्यु, श्रीमन्यु श्री: निश्चय, सर्व सुन्दर, जयवान, विनयलाल सनयमिन, सो यह चातुर्मासिक में मथुरा के वन में वट के वृक्ष तले आयः विराजे सो मथुरा में चमरेन्द्र द्वारा जो मंग फैजी थी। इन संसपियों के प्रभाव कर नष्ट होगई थे चारण मुनि श्रुति केवली आकाश मार्ग होय कभी पौदनापुर कभी विजयपुर कमी अजोध्या पारणा को आवें । अहंदत सेठ अजोध्या ने विचारों कि चातुर्मास में मुनि गमेन न करें यह ऋपि पहले देखे नहीं कहां से आये ये . जिन मार्ग विरुद्ध गमन करते हैं सो आहार न दिया उठ गया । तब उसकी पुत्र वधू ने आहार दिया । वे मुनि श्राद्दार लय भगवान के चैत्यालय में
SR No.010185
Book TitleDharm Jain Updesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDwarkaprasad Jain
PublisherMahavir Digambar Jain Mandir Aligarh
Publication Year1926
Total Pages151
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy