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________________ ફ્ वुद्ध नहीं रह सकता, इस विवेक से गुरु का वियोग सहन किया । बुद्ध के फूलो पर कहाँ समाधि बाँधी जावे इस विषय पर उनके शिष्यों में बहुत कलह मच गई। आखिर उन फूलों के आठ विभाग किए गए। उन्हें भिन्न भिन्न स्थानों पर भाड़कर उनपर स्तूप बांधे गए। ये फूल जिस घड़े मे रखे गए थे उस घड़े पर और उनकी चिता के कोयलों पर भी दो स्तूप बांधे गए । २६. बौद्ध तीर्थ : फूल पर बांधे हुए आठ स्तूप इन ग्रामों में हैं : राजगृह ( पटना के पास), वैशाली, कपिलवस्तु, अल्लकप्प, रत्नग्राम, वेद्वीप. पाचा और कुसिनारा | बुद्ध का जन्मस्थान लुंबिनीवन (नेपाल की तराई में ), ज्ञानप्राप्ति का स्थान बुद्धगया, प्रथमोपदेश का स्थान सारनाथ (काशी के पास ) और परिनिर्वाण का स्थान कुसिनारा गौद्ध धर्म के तीर्थ के रूप में लंबे समय तक पुजते रहे । २७. उपसंहार : ऐसी पूजा विधि से युद्ध के अनुयायियों ने बुद्ध के प्रति अपना खादर प्रकट किया। लेकिन उनके खुद के अंतिम उपदेश में इस प्रकार कहा हुआ है : " मेरे परिनिर्वाण के बाद मेरे देह को पूजा करने के बखेड़े में न पड़ना । मैंने जो सन्मार्ग बताया है उस पर ' चलने का प्रयत्न करना। सावधान, उद्योगी और शांत रहना । मेरे अभाव में मेरा धर्म और विनय को ही अपना गुरु मानना । जिसकी उत्पत्ति हुई है, उसका नाश है यह विचार कर सावधानी पूर्वक बर्ताव करना ।"
SR No.010177
Book TitleBuddha aur Mahavira tatha Do Bhashan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishorlal Mashruvala, Jamnalal Jain
PublisherBharat Jain Mahamandal
Publication Year1950
Total Pages163
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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