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________________ कुछ प्रसंग और निर्वाण २२. देवदत्त की विमुखताः। बाद में देवदत्त ने बुद्ध के कुछ शिष्यो को फोड़कर जुदा पंथ निकाला । पर उन्हें वह रख नही सका और सारे शिष्य वापस बुद्ध की शरण मे आ गए। कुछ समय बाद देवदत्त बीमार हो गया । उसे अपने कर्मों के लिए पश्चात्ताप होने लगा। पर उन्हे बुद्ध के समक्ष प्रकट करने के पहले ही उसकी मृत्यु हो गई। २३. अजातशत्रु ने भी अपने कर्मों के लिए पश्चात्ताप किया। उसने फिर से वुद्ध की शरण ली और सन्मार्ग पर चलने लगा। २४. परिनिर्वाण : अस्सी साल की उम्र होनेतक बुद्ध ने धर्मोपदेश किया। संपूर्ण मगध मे उनके इतने विहार फैल गए कि मगध का नाम 'बिहार' पड़ गया। हजारो लोग बुद्ध के उपदेश से अपना जीवन सुधारकर सन्मार्ग पर लगे। एक बार भिक्षा मे कुछ अयोग्य अन्न मिलने से युद्ध को अतिसार का रोग हो गया । उस बीमारी से बुद्ध उठे ही नहीं । गोरखपुर जिले में कसया नामक एक ग्राम है । वहाँ से एक मील अन्तर पर माथाकुवर का कोट नामक स्थान है, उसके आगे उस काल मे कुसिनारा नामक ग्राम था। वहाँ बुद्ध का परिनिर्वाण हुआ। २५. उत्तर क्रियाः उनकी मृत्यु से उनके शिष्यों में बहुत शोक छा गया। ज्ञानी शिष्यों ने सारे संस्कार अनित्य हैं, किसी के साथ सदा का समागम
SR No.010177
Book TitleBuddha aur Mahavira tatha Do Bhashan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishorlal Mashruvala, Jamnalal Jain
PublisherBharat Jain Mahamandal
Publication Year1950
Total Pages163
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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