SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 85
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १०. क्या उनका पुनर्जन्म होना और न होना दोनों ही बाते असत्य हैं? इसमें चार प्रश्न विश्व से, दो आत्मा से, चार प्रश्न 'तथागत' से सम्बन्धित है। बौद्ध दर्शन में 'तथागत' निर्वाण प्राप्त व्यक्ति को कहा जाता है। बौद्ध दर्शन के सिद्धान्त बौद्ध दर्शन के मुख्य सिद्धान्त संक्षिप्त रूप में निम्नवत् हैचार आर्यसत्य- भगवान् बुद्ध के सारे उपदेश इन्हीं चार आर्य सत्यों में सन्निहित हैं। ये चार आर्यसत्य इस प्रकार हैं १. संसार में दुःख है। २. दुःखों का कारण है। ३. दुःखों का निरोध संभव है। ४. दुःखों के निरोध का मार्ग है। इन्हीं चार आर्य सत्य को अन्य शब्दों में दुःख, दुःख समुदाय दुःख निरोध और दुःख निरोधगामिनी प्रतिपदा क्रमशः कहा गया है। ये चार आर्य सत्य 'मज्झिम निकाय' में वर्णित है। बुद्ध का प्रथम आर्यसत्य है- संसार दुःखमय है, सब कुछ दुःखमय है (सर्व-दुखं दुःखम्) "जन्म में दुःख है, नाश में दुःख है रोग दुःखमय है, मृत्यु दुःखमय है, अप्रिय से संयोग दुःखमय है और प्रिय से वियोग दुःखमय है संक्षेपतः से उत्पन्न पन्चस्कन्ध दुःखमय है।' ये चारो आर्य सत्य प्रामाणिक है और आर्य-पुरूषों को भी मान्य है क्योंकि दुःख के अस्तित्व में किसी का मतभेद नहीं है क्योंकि इसका अनुभव प्रत्येक प्राणीमात्र को होता है। बौद्ध धर्म के चार आर्यसत्य के समान योगशास्त्र में महर्षि व्यास ने अध्यात्म क्षेत्र में कहा है कि "अध्यात्मशास्त्र भी चिकित्साशास्त्र की तरह चतुर्दूह है। अध्यात्मक्षेत्र में संसार है, (दुःख), संसार हेतु (दुःख समुदाय), मोक्ष (दुःख निरोध) और मोक्षेपाय (दुःख निरोधका उपाय) ये चार सत्य हैं। बुद्ध का द्वितीय आर्यसत्य है दुःख समुदाय अर्थात 'मज्झिम निकाय (१:५:४)।
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy