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________________ किसी आग्रही मनुष्य की बुद्धि एक बार जब किसी बात को पकड़ लेती है तब उसी की पुष्टि में वह युक्तियों के प्रयोग का सहारा लेता है किन्तु जो निष्पक्ष और अनाग्रही होता है उसकी बुद्धि युक्ति का अनुगमन करती है। इस प्रकार युक्तियों के माध्यम से जो वस्तु का स्वरूप प्रकट होता है, निष्पक्ष विचारक उसी को स्वीकार करता है। जैन दर्शन यह मानता है कि प्रत्येक वस्तु अनन्त धर्मात्मक होती है-"अनन्त धर्मात्मकमेव तत्वम"। इसलिये किसी मनुष्य के स्वरूप ज्ञान के लिये उसके देशकाल-जाति, जन्म, धर्म-वर्ग आदि सत्तात्मक धर्मों का ज्ञान आवश्यक है। पुनः उस मनुष्य के निषेधात्मक गुणों की भी जानकारी अत्यन्त अपेक्षित है। प्रत्येक पदार्थ के तीन लक्षण सामान्य रूप से होते हैं- उत्पाद, व्यय, धौव्य। इस प्रकार द्रव्य नित्यानित्य है सत् और असत् दोनों हैं। जो धर्म जिस पदार्थ में विद्यमान होता है उन्हें उस पदार्थ का स्वपर्याय कह जाता है और जो धर्म नहीं रहता है उसे पर्याय कहा जाता है। इस प्रकार वस्तुतः अनन्त धर्मों का आस्पद होती है। स्याद्वाद पदार्थ का अनेकान्त रूप जिस पद्धति से ज्ञात होता है उसे स्याद्वाद कहा जाता है जिसे सप्तभंगीनय के रूप में प्रस्तुत किया जाता है-सप्तभंगीनय के सात अंग होते हैं जैसे १- (घटः) स्यादस्ति- घट् कथंचित-किसी अपेक्षा से-किसी रूप से है। २- (घटः) स्यान्नास्ति- घट् कथंचित् नहीं है। ३- (घटः) स्यात् अस्ति च, नास्ति च-घट् कथंचित् है भी-कथंचित् नहीं भी है। ४- (घटः) स्याद् वक्तव्य-घट् कथंचित अवक्तव्य-अनिर्वाच्य है। ५- (घटः) स्यात् अस्ति च, अवक्तव्यश्च-घट् कथंचित् अस्तित्ववान् और अवक्तव्य है।
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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