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________________ आभास के विषय में भी चाहे कुछ भी कहा जाय वह अपने आप में स्थिर नहीं रह सकता है। क्योंकि आधार और आश्रय इसके लिये आवश्यक है । अतः यदि शकर ब्रह्म को निरपेक्ष सत् और संभवन स्वरूप समस्त संसार का अन्तिम आधार और आश्रय मानते है तो उनका विचार तर्क संगत ही है । और यह भी युक्ति युक्त है कि सत् के वास्तविक स्वरूप में संभवन का प्रवेश संभव नही है अन्यथा सत् का अस्तित्व ही समाप्त हो जायेगा और आत्म व्याघात उपस्थित होगा। ऐसी स्थिति में प्रश्न उठता है कि संभवन का सत् से क्या सम्बन्ध है । यह एक सर्वोपरि समस्या है। शङकर दर्शन का अध्ययन करने वाले को देर-सबेर इसका सामना करना पडता है। इस प्रश्न का उत्तर शङकर दर्शन में सामान्यतः सन्तोष जनक नहीं प्रतीत होता है । किन्तु निःसंकोच हम कह सकते हैं कि शङ्कर के सूक्ष्म तर्कों का सत्यनिष्ठ के साथ अनुकरण करे तो शङकर ने जो उत्तर दिया है इसके अतिरिक्त कोई और संतोषजनक विकल्प नहीं दिखाई देता है। यही कारण है कि श्रीहर्ष, वाचस्पति मिश्र, सुरेश्वराचार्य, माधवाचार्य जैसे तार्किक विद्वानो ने इस दर्शन से अपनी सहमति प्रकट की और इसमें कुछ भी तर्कविरुद्ध नहीं पाया है । दृढ़ तर्क और साहसपूर्ण प्रतिज्ञाप्तियाँ ही इस दर्शन की सशक्त और सुदृढ़ आधार है। इसमें मुख्य बात है कि इस दर्शन में अव्यवहित तथा असंदिग्ध ज्ञान प्राप्त करने की जो प्रेरणा दी गयी है उससे इसके ऊपर लगाये गये असंगति के सभी आक्षेप धुल जाते है । आचार्य शङ्कर का व्यवहारिक तथा परमार्थिक दृष्टिकोण का भेद स्मरणीय है । यह भेद वैज्ञानिकों द्वारा भी मान्य है क्योकि वे स्वंय ऐसा भेद मानते है । सत् के विषय मे वैज्ञानिक दृष्टिकोण तथा सामान्य लोगों के दृष्टिकोंण में अन्तर है। शङ्कर के इस द्विविध के कारण एक तो इस दर्शन पर लगाया जाने वाला नैतिकता के प्रति उपेक्षा या तटस्थता का आरोप दूर हो जाता है और दूसरे से बहुत लोग इसकी ओर आशा से 366
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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