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________________ आचार्य सुरेश्वर के आभासवाद एवं वाचस्पति मिश्र के अवच्छेदवाद में भेद मुख्य रूप से दृष्टव्य है। अवच्छेदवादी मानते है कि सर्वव्यापी एवं असीम ब्रह्म ही जीव की अविद्या की अनन्त उपाधियों के कारण अवच्छिन्न एवं ससीम रूप को प्राप्त होता है। इस प्रकार अवच्छेदवाद के अनुसार अवच्छेद (ब्रह्म का अवच्छिन्न रूप में दर्शन) तो मानसिक धारणा मात्र होने के कारण मिथ्या है। परन्तु जो (ब्रह्म) अवच्छिन्न रूप में प्रतीत होता है वह तो सर्वथा अनवच्छिन्न एवं सत्य ही है। इसके विपरीत आभासवाद के अनुसार जगत की सत्यता का आभास किसी प्रकार भी सत्य नहीं है। __जहां तक प्रतिबिम्बवाद का प्रश्न है इसके अनुसार बिम्ब (मूलतत्त्व) एवं प्रतिबिम्ब में अभिन्नत्व है, परन्तु इसके विपरीत आभासवाद सिद्धान्त के अनुसार मूलतत्व (ब्रह्म) एवं आभासवाद द्वैतरूप जगत् में अभिन्नत्व नहीं है। किन्तु प्रतिबिम्बवाद यह मानता है कि अविद्या में परमार्थ सत्य रूप ब्रह्म का जो प्रतिबिम्ब दिखाई पड़ता है वह ब्रह्म से पृथक न होने के कारण सत्य है, क्योकि प्रतिबिम्ब सर्वथा सत्य होता है यदि प्रतिबिम्ब असत्य दिखलाई पड़ता है या प्रतीत होता है तो इसका कारण केवल अविद्या है। क्योंकि बिम्ब एवं प्रतिबिम्ब के भेद दर्शन के कारण ही दृष्टा को प्रतिबिम्ब मिथ्या प्रतीत होता है, अभेद दर्शन के द्वारा नहीं। प्रतिबिम्बवादी जीव को शुद्ध चेतन का प्रतिबिम्ब मानते है और अपने मत के समर्थन में 'आभास एवं च' (ब्रह्मसूत्र २/३/५०), यह सूत्र प्रस्तुत करतें है। इस सूत्र के अनुसार जीव ब्रह्म का आभास है, अर्थात् प्रतिबिम्ब है। ब्रह्म बिम्ब है, जीव प्रतिबिम्ब है। जिस प्रकार सूर्य और जलस्थित सूर्य के प्रतिबिम्ब में भेद नहीं होता है उसी प्रकार ब्रह्म और ब्रह्म-प्रतिबिम्ब जीव में भेद नहीं होता है। जिस प्रकार प्रतिबिम्ब भाव से सूर्य नाना हो सकता है उसी प्रकार नाना अन्तःकरणों में प्रतिबिम्बवत ब्रह्म भी नाना जीवरूप में प्रतीत होता है। आचार्य सुरेश्वर बिम्ब और प्रतिबिम्ब को भिन्न न मानकर अभिन्न मानते है। इनके अनुसार प्रतिबिम्ब बिम्ब की 354
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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