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________________ भामती की टीकाएँ भामती पर अमलानन्द सरस्वती ने 'वेदान्त कल्पतरु' नामक एक टीका लिखी है। इन्होंने भामती को शारीरक भाष्य का वार्तिक कहा है।' भामती पर और भी अन्य टीकाएं है- जैसे बल्लाल सूरिकृत भामती तिलक, अखण्डानुभूति यतिकृत ऋजुप्रकाशित, अच्युतकृष्णतीर्थ कृत भामती भाव दीपिका, अज्ञात कर्तृक भामती युक्तार्थ संग्रह आदि है। दार्शनिक विचार वाचस्पति मिश्र का सबसे प्रसिद्ध सिद्धान्त अवच्छेद वाद है। शङ्कर अद्वैतवाद के अनुसार जीव-जगत्-ईश्वर-परमात्मा आदि में कोई वास्तविक भेद नहीं माना जाता है बल्कि भेदप्रतीति औपाधिक है। इस औपाधिक भेद की व्याख्या के लिये तीन मत प्रसिद्ध है- (१) प्रतिबिम्बवाद- श्री पदमपादाचार्य का (८०० ई० में) (२) आभासवाद सुरेश्वराचार्य का है ८२५ में स्थापना हुई। (३) अवच्छेदवाद (८५० ई० में) श्री वाचस्पति मिश्र का सिद्धान्त है। अवच्छेदवाद के अनुसार ब्रह्म निरस्तोपाधि जीव है और जीव अविद्योपाधि ब्रह्म है। मिश्र का कथन है कि जीव की अविद्योपाधि के कारण अनवच्छिन्न एवं असीम ब्रह्म अवच्छिन्नता एवं ससीमता को प्राप्त होता है। जिस प्रकार आकाश एक और अविभज्य है किन्तु सांसारिक लोग घटाकाश मठाकाश कहकर अभिहित करते है उसी प्रकार एक ही असीम ब्रम्ह जीव की अविद्योपाधि के कारण ससीमता एवं अवच्छिन्नता को प्राप्त होता है। जैसे घट-मठ रूपी उपाधियों के नष्ट होने पर घटाकाश-मठाकाश आदि भेद नष्ट हो जाते हैं उसी प्रकार अविद्योपादि के नष्ट हो जाने पर जगत के समस्त भेद नष्ट हो जाते है और ब्रह्मात्मा ही शेष रह जाता है। ' 'ननु टीकायां दुरुक्त चिन्ता न युक्ता वार्तिके हि सा भवति तर्हि वार्तिकत्वमस्तु न हि वार्तिकस्य श्रृंगमस्ति' (कल्पतरु २/४/१६) उपाध्यवच्छिन्नश्च जीवः (भामती-न्याय निर्णय रत्नप्रभा में भामती पृ० २१० 291
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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