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________________ न्याससूची निबन्धोऽसावकारि सुधियां मुदे । श्री वाचस्पति मिश्रेण वस्वङ्कवसुवत्सरे ।। इस प्रकार उनका समय निश्चित है वे दसवीं शताब्दी के एक श्रेष्ठ सर्वतंत्र स्वतंत्र दार्शनिक है । ये भामती प्रस्थान के संस्थापक आचार्य हैं। इनकी प्रसिद्ध कृति 'भामती' शङ्कराचार्य के शारीरक भाष्य की विशद और मौलिक टीका है। ये मण्डन मिश्र से भी प्रभावित थे। इसके अतिरिक्त उन्होंने मण्डन मिश्र की 'ब्रह्मसिद्धि' पर 'ब्रह्मतत्व समीक्षा' नामक एक टीका लिखी थी जो अब अनुपलब्ध है। इसका उल्लेख वाचस्पति मिश्र ने भामती में कई स्थानों पर किया है- यथा भाष्यभामती में (ब्रह्मसूत्र के ३/३१ / ५४) कहते है कि- 'न च विषय भेद ग्राहि प्रमाणमस्तीति चोपपादितं ब्रह्मतत्त्व समीक्षायां अस्माभिः।' वेदान्त के अतिरिक्त अन्य शास्त्रों पर भी इनकी कृतियां है- जैसे- न्याय शास्त्र पर न्यायसूची निबन्ध, न्यायवार्तिक तात्पर्य, पतञ्जलियोगसूत्र पर व्यासभाष्य की टीका - तत्ववैशारदी, पूर्वमीमांसा का एक प्रकरण ग्रन्थ तत्व बिन्दु और मण्डन मिश्र के विधिविवेक पर न्यायकणिका नामक टीका उनके ग्रन्थ है । ग्रन्थों को देखकर लगता है कि ये अपनी दर्शन यात्रा न्याय दर्शन से आरंभ कर सांख्य योग दर्शन तक पहुंचे थे और पुनः वहां से पूर्वमीमांसा का मार्ग पकड़कर वेदान्त तक पहुँचे थे। भामती श्री मिश्र की अन्तिम रचना प्रतीत होती है। क्योंकि वे इसके अन्त में कहते है कि- 'जो पुण्य मैने न्यायकणिका, ब्रह्मतत्त्व समीक्षा, तत्व बिन्दु तत्वकौमुदी (सांख्य निबन्ध) तत्त्व वैशारदी (योग निबन्ध) और भामती (वेदान्त निबन्ध) लिखकर प्राप्त किया है उसके फल को परमेश्वर को चढ़ाता हूँ। परमेश्वर मुझसे प्रसन्न हो" । 1 संस्कृत वाङ्गमय का वृहद इतिहास- दशम खण्ड वेदान्त पं० बल्देव उपाध्याय - पृ० ८५ 290
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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