SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 291
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ रहित ऐसा मुक्त पुरुष सर्वत्र ब्रह्म का ही दर्शन करता है क्योकि वह स्वयं ब्रह्म स्वरुप हो जाता है- 'तत्र को मोहः कः शोकः एकत्वमनुपश्यतः । इस प्रकार शङ्कराचार्य ने माक्ष के तीन लक्षण बताये है- १. अविद्यानिवृत्तिरेव मोक्षः (मोक्ष अविद्यानिवृत्ति है। २. ब्रम्हभावश्च मोक्षः (ब्रह्मभाव मोक्ष है) ३. नित्यमशरीरत्वं मोक्षाख्यम् (नित्य शरीरत्व मोक्ष है) शङ्कर मुक्ति के दोनों रूपों को मानते है- सदेह मुक्ति और विदेह मुक्ति। अधिष्ठान भूत आत्म साक्षात्कार से अविद्या निवृत्त होते ही शरीर के रहने पर भी अशरीरत्व या जीवनमुक्ति सिद्ध होती है जीवनमुक्त व्यक्ति को अपने शरीर से उसी प्रकार कोई आसक्ति नहीं होती है जिस प्रकार सर्प को अपनी केंचुली से नहीं होती है। जिस प्रकार कुलाचक्र पूर्ववेग के कारण कुछ देर तक घूमता रहता है उसी प्रकार जीवन मुक्त का शरीर प्रारब्ध कर्म के कारण कुछ समय तक बना रहता है किन्तु इस समय किसी नवीन कर्म का संचय नहीं होता है। प्रारब्ध कर्म के नष्ट होने पर ही देहपात होकर विदेह मुक्ति होती है। अर्थात् जब 'तत्वमसि' महावाक्य की (उपदेश) परिणति 'अहं ब्रह्मास्मि' इस अनुभव वाक्य में होती है तब ब्रह्म साक्षात्कार होता है। शङ्कर ने कर्म और भक्ति को ज्ञान प्राप्ति में सहायक न मानकर केवल ज्ञान को माना है। ज्ञान की प्राप्ति वेदान्त दर्शन के अध्ययन से ही संभव है। जो साधनचतुष्टय का पालन करता है वहीं वेदान्त का सच्चा अधिकारी बनता है- जो निम्न है१. नित्यानित्य वस्तु विवेक- साधक को नित्य और अनित्य वस्तुओं में भेद करने का विवेक होना चाहिए। 274
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy