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________________ अनुभूतियों को अपना समझ लेता है और भोक्ता बनकर जन्म-मरण के चक्र में फंस जाता है और संसरण करता रहता है यही बन्धन है। अर्थात् आत्मा का शरीर और मन से अपनापन का सम्बन्ध ही बन्धन है। वस्तुतः बन्धन और मोक्ष दोनों व्यवहारिक है तथा परमार्थतः मिथ्या है। ब्रह्म साक्षात्कार, अविद्यानिवृत्ति प्रपञ्च विलय, मोक्ष प्राप्ति ये सब एक बात है और उपचार मात्र है अविद्यानिवृत्ति और ब्रह्म भाव या मोक्ष में कार्यान्तर नहीं है।' आचार्य शङ्कर ने ब्रह्मसूत्र शाङ्कर भाष्य में समन्वयाधिकरणस्थ 'तत्तुसमन्वयात्' इस सूत्र के विवेचन क्रम में 'ब्रह्मभावश्च मोक्षः' अर्थात् ब्रह्मभाव या ब्रह्मावगति को मोक्ष कहा गया है यह मोक्ष नित्य, शुद्ध, ब्रह्मस्वरूपवान मोक्ष सुख के समान आपेक्षिक या परिणामी सुख नहीं है जो धर्म के क्षीण होने पर नष्ट हो जाय- 'क्षीर्णपुण्ये मर्त्यलोकं विशन्ति' अर्थात् मोक्ष परमार्थिक नित्य है। मोक्ष किसी कर्म से प्राप्त नहीं हो सकता है उसके लिये ब्रह्म या परमसत् का अव्यवाहित ज्ञान अपेक्षित है। अनासक्त भाव से किये गये कर्म इस मार्ग को प्रशस्त कर सकते है। किन्तु इसके द्वारा भी साक्षात ज्ञान नहीं हो सकता है। उसके लिये ब्रह्म या परमसत् का अव्यवहित ज्ञान अपेक्षित है। अनासक्त भाव से किये गये कर्म इस मार्ग को प्रशस्त कर सकते है किन्तु इसके द्वारा साक्षात् ज्ञान नहीं हो सकता है। कर्म का परिणाम तो केवल रचना-रूपान्तरण, परिवर्तन या किसी वस्तु की उपलब्धि रुप में देखा जाता है। किन्तु मोक्ष इसमें से कुछ नहीं है अर्थात् कर्मो से शंकराचार्य मोक्ष का सीधा सम्बन्ध नहीं मानते है।' ब्रह्मभाव को प्राप्त करने के पश्चात् 'भिद्यते हृदयग्रन्थिश्छिद्यन्ते सर्वसंशया । क्षीयन्ते चास्य कर्माणि तस्मिन दृष्टे पराऽवरे।' अर्थात् सभी प्रकार के शोक एवं मोह से 1 श्रुतयो मध्ये कार्यान्तरं वारयन्ति । शाड्कर भाष्य १/१/१४ 2 नित्यो हि मोक्ष:- शाङ्कर भाष्य तैत्तिरीय १.२ 3 शाङ्कर भाष्य तैत्तिरीय - १.२ 'शाङ्कर भाष्य ब्रह्मसूत्र-४-१-१३ 273
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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