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________________ प्रत्येक भाष्यकार ने अपनी भाष्य की पुष्टि हेतु वेद और उपनिषद् में वर्णित विचारों का उल्लेख किया। जितने भाष्यकार हुये उतना ही वेदान्त दर्शन का सम्प्रदाय विकसित हुआ। वेदान्त दर्शन के चार सम्प्रदाय मुख्य रूप से है १. अद्वैतवाद- आचार्य शङ्कर २. विशिष्टाद्वैतवाद- रामानुज ३. द्वैतवाद- मध्वाचार्य ४. द्वैताद्वैत- निम्बार्काचार्य शाङ्कर दर्शन- अद्वैतवेदान्त ब्रह्मविचार- आचार्य शङ्कर के सुप्रसिद्ध वेदान्त सिद्धान्त को समझने के लिये यह श्लोक परम विख्यात है श्लोकार्द्धन प्रवक्ष्यामि यदुक्तं ग्रन्थकोटिभिः । ब्रह्मसत्यं जगन्निमिथ्या जीवो ब्रह्मैव नाऽपरः।। अर्थात् जो सिद्धान्त विस्तार से करोड़ो ग्रन्थों के द्वारा कहा गया है वह यह है कि एकमात्र सर्वात्मा या परमात्मा (१) ब्रह्म ही सत्य है। (२) नाम रूपात्मक यह जगत मिथ्या है। वस्तुतः यह स्थिर सत्ता के अभाव में प्रतीयमान है और (३) यह जीव ब्रह्म ही है (४) जीव और ब्रह्म में कोई भेद नहीं। उपर्युक्त इन्हीं चार तथ्यों पर अद्वैतवाद का पूरा दर्शन आधारित है। सत्य और मिथ्या की परिभाषा के अनुसार परमार्थ सत्य वह है- 'यत् स्यात् सर्वत्र सर्वदा' (चतुःश्लोकी भागवत्) अर्थात् जो सभी कालों में विद्यमान हो, किसी भी काल में जिसका बाध न हो अर्थात् त्रिकालाबाधित हो और जो सर्वत्र अवस्थित है। यदि उस परमार्थ सत् को कोई छोड़ना चाहे तो नहीं छोड़ सकता है क्योकि उसका सभी के साथ तादात्म्य सम्बन्ध है। भेद सहिष्णु, अभेद सम्बन्ध का नाम तादात्म्य है अर्थात् जिसमें वास्तविक अभेद एवं काल्पनिक भेद हो जैसे सुवर्ण के साथ आभूषणों का। वह ब्रह्म सर्वत्र कालपरिच्छिन्न से रहित है। अतः श्रुति द्वारा 'सत्यज्ञानमनन्तं ब्रह्म' कहा गया 258
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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