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________________ दीक्षा के उपरान्त आचार्य काशी और हिमालय गये फिर सम्पूर्ण भारत का भ्रमण किये, और बौद्धविप्लव के अनन्तर हिन्दू धर्म को सनातन बौद्धिक आदर्श में पुनः प्रतिष्ठित करने के लिये दूरदर्शी प्राज्ञ आचार्य ने भारत के चार प्रान्तों में चार धर्म दुर्गा-मठ स्थापित किये। उत्तर में बदरीकाश्रम में ज्योर्तिमठ, पूर्व दिशा में जगन्नाथ पुरी में गोवर्धन मठ, पचिम में द्वारिका में शारदा-मठ और दक्षिण में शृंगेरी में शृंगेरी मठ। ये चारों मठ प्रहरी के सदृश मानों ये चारों वेदों की तथा भारत की चारों सीमाओं की रक्षा करते हुये तब से आज तक 'विजय वैजन्ती' फहरा रहे हैं। इन मठों के आतिरिक्त काञ्ची में कामकोटि मठ और काशी में सुमेरु मठ भी शङ्कराचार्य द्वारा स्थापित माने जाते हैं। इन मठों के मठाधीश जगदगुरू शङ्कराचार्य कहे जाते हैं जो शङ्कराचार्य के मतों का उन्नयन तथा प्रचार प्रसार करते हैं। इन मठों के अतिरिक्त शक्ति पीठों की तथा द्वादश ज्योर्तिलिंगों की स्थापना का श्रेय भी आचार्य शङ्कर को दिया जाता है। शङ्कराचार्य के शिष्य शङ्कराचार्य ने अपने जीवन काल में पूर्वोक्त चार पीठों की स्थापना करके सुरेश्वर, पद्मपाद, तोटक, और हस्तामलक इन चार प्रतिभासम्पन्न शिष्यों को पीठाधीश्वर पद पर अभिषिक्त किया था। इन शिष्यों में सुरेश्वर और पद्मपाद ने विशेष ख्याति आर्जित की। शिष्य पद्मपाद और सुरेश्वर द्वारा अद्वैतवेदान्त के दो सम्प्रदायों की स्थापना की है जिन्हें क्रमशः विवरणप्रस्थान और वार्तिकप्रस्थान कहा जाता है। हस्तामलक का केवल "हस्तामलकस्तोत्र" है जिसमें केवल १४ श्लोक हैं। यह याज्ञवल्क्य संवाद शैली का प्रतिपादक है। इसग्रन्थ में गुरु शिष्य संवाद है। "हस्तामलक स्तोत्र" अतिवर्णाश्रमी धर्म 245
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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