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________________ संस्कृत के श्रेष्ठ कवियों ने भी जब अपनें आश्रय दाताओं के नामोल्लेख करने तथा ग्रन्थ के रचनाकाल के निर्देश करने की ओर अपना ध्यान नहीं दिया है तब हमें शङ्कराचार्य जैसे विरक्त पुरुष को इन आवश्यक बातों के उल्लेख करने पर आश्चर्य नहीं करना चाहिये। वे सच्चे सन्यासी तथा विरक्त साधक थे। उन्हें इस बात की चिन्ता ही क्या हो सकती थी कि वे अपने सम-सामयिक राजा-महाराजा के नाम का कहीं उल्लेख करते। इनके शिष्यों की दशा इस विषय में उनसे भिन्न न थी। उन लोगों के ग्रन्थो में भी समय-रूिपण की ऐतिहासिक सामग्री का सर्वथा अभाव है। यही कारण है कि आचार्य के काल का इदमित्थंरूपेण निरूपण करना इतनी विषय समस्या है। आचार्य के काल निर्धारण को लेकर गहरा मतभेद है। विक्रम पूर्व सप्तम शतक से लेकर विक्रम से अनन्तर नवम शतक तक किसी समय में इनका आविर्भाव हुआ यह सब कोई मानते हैं परन्तु किस वर्ष में इनकी उत्पत्ति हुई थी इसके विषय में कोई सर्वमन्य मत नहीं है। सम्प्रति उनके जन्मकाल के समय में बारह मत प्रचलित हैं जो उनको ५०० ई० से लेकर ६०० ई० तक बताते हैं। इस अनिश्चितता में आशा की एक किरण वाचस्पति मिश्र का निश्चित समय है जिन्होंने ८६८ वि० सं० में 'न्याय-सूची' निबन्ध लिखा था और जिन्होंने शङ्कर के शारीरिक भाष्य पर 'भामती' नामक टीका लिखी है। अतः शङ्कर का जन्म समय निश्चित रूप से ८४१ ई० (८६८.५७) से पहले था। एक और प्रमाण यह है कि शङ्कराचार्य के शिष्य सुरेश्वराचार्यका उदाहरण जैन दार्शनिक विद्यानन्द ने दिया है जिसकी जानकारी शान्ति रक्षित द्वारा तत्त्व-संग्रह में दी गयी है। तत्त्व-संग्रह का रचनाकाल ७४८ ई० है। अतएव विद्यानन्द, सुरेश्वर और शङ्कर निश्चित रूप से ७४८ ई० के पहले थे। किन्तु विद्वानों का एक बड़ा वर्ग आचार्य शङ्कर का जन्म ७८८ ई० में और निधन ८२० ई० में हुआ था। उनका अल्प जीवन मात्र ३२ वर्ष का था। शङ्कराचार्य के विषय में कहा गया है 242
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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